Tuesday 10 May 2022

द्वितीय विश्व युद्ध की विजय का सारा श्रेय वीर भारतीय सैनिकों को जाता है ---

 प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध की विजय का सारा श्रेय वीर भारतीय सैनिकों को जाता है।

(1) द्वितीय विश्व युद्ध में मरे ज्ञात-अज्ञात लाखों भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजली.....
(2) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों से भारत स्वतंत्र हुआ .....
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९ मई १९४५ को द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति रूसी सेना द्वारा जर्मनी को पूर्ण रूप से पराजित कर बर्लिन पर किये अधिकार के पश्चात हुई थी| इससे पूर्व इटली और जापान भी परास्त कर दिए गए थे| मित्र राष्ट्रों की सेनाएँ बर्लिन की ओर बढ़ रही थीं और रूस की सेना दो टुकड़ियों में अलग अलग दिशाओं से युद्ध करती हुई आगे बढ़ रही थीं| रुसी फील्ड मार्शल जुकोव की सैन्य टुकड़ी ने सबसे पहिले पहुँच कर मर्मान्तक और अंतिम निर्णायक प्रहार कर युद्ध को समाप्त कर दिया| पूरे युद्ध में सभी मोर्चों पर जर्मन सेनाएँ बहुत अधिक वीरता और साहस के साथ लड़ीं, युद्ध में वीरता के अनेक कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किये पर उनके भाग्य में पराजय ही लिखी थी|
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इस युद्ध में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों का युद्ध के चारे (War fodder) के रूप में प्रयोग किया| जैसे आग में ईंधन डालते हैं वैसे ही युद्ध की आग में मरने के लिए भारतीय सैनिकों को झोंक दिया जाता था| अंग्रेजों ने लाखों भारतीय सैनिको को किस किस तरह से मरवाया इसके बारे में अनुसंधान किया जाए और लिखा जाय तो अनेक ग्रन्थ लिखे जायेंगे| अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पूर्व अपने द्वारा किये हुए नरसंहारों और अत्याचारों के सारे अभिलेख नष्ट कर दिए थे और विवश होकर भारत छोड़ते समय सता का हस्तान्तरण भी अपने ही मानसपुत्रों को कर गए| अगस्त १९४७ से सन १९५२ तक अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं का राज था| अब प्रमाण मिल रहे हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय बर्मा में अंग्रेजों ने लाखों भारतीय सैनिकों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया था| उनका राशन योरोप में भेज दिया गया| लाखों भारतीय सैनिक तो भूख से मरने के लिए ही विवश कर दिए गए थे|
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द्वितीय विश्वयुद्ध से भारत को हुआ लाभ .....
इस युद्ध ने अंग्रेजों की कमर तोड़ दी थी| अँगरेज़ सेनाएँ हताश और बुरी तरह थक चुकी थीं| उनमें इतना सामर्थ्य नहीं बचा था कि वे अपने उपनिवेशों को अपने आधीन रख सकें| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से अँगरेज़ बहुत बुरी तरह डर गये थे| उन्हें डर था कि यदि भारतीयों के ह्रदय सम्राट नेताजी सुभाष बोस भारत में जीवित बापस आ गए तो सता उन्हीं को मिलेगी और अन्ग्रेज भारत का विभाजन भी नहीं कर पायेंगे| साथ साथ उनके मानस में भारतीय क्रांतिकारियों का भी भय था|
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युद्ध से पूर्व और युद्ध के समय वीर सावरकर ने पूरे भारत में घूम घूम कर हज़ारों राष्ट्रवादी युवकों को सेना में भर्ती करवाया| उनका विचार था कि भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न ही उन्हें उनका प्रयोग करना आता है| उनकी योजना थी कि भारतीय युवक सेना में भर्ती होकर अस्त्र चलाना सीखेंगे और फिर अंग्रेजों के उन अस्त्रों का मुँह अंग्रेजों की ओर ही कर देंगे| उनकी योजना सफल रही| युद्ध के पश्चात् भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अफसरों के आदेश मानने बंद कर दिए और उन्हें सलाम करना भी बंद कर दिया| सन १९४६ में नौसेना ने विद्रोह कर दिया| अँगरेज़ अधिकारियों को कोलाबा में बंद कर उनके चारों ओर बारूद लगा दी| पूरे बंबई के नागरिक भारतीय नौसैनिकों के समर्थन में सडकों पर आ गए|
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अँगरेज़ समझ गए कि हिन्दुस्तानी भाड़े की फौज (वे हिन्दुस्तानी सैनिकों को भाड़े के सिपाही यानि mercenary ही मानते थे) तो अब उनका आदेश नहीं मानती और अँगरेज़ सेना में इतना दम नहीं है कि उन पर नियंत्रण कर सके, तब अंग्रेजों ने भारत का जितना विनाश और कर सकते थे उतना अधिकतम विनाश कर के भारत छोड़ने का निर्णय कर लिया और भारत को तथाकथित आज़ादी यानि सत्ता हस्तांतरण अपने मानस पुत्रों को कर के चले गए| कभी भारत का स्वतंत्र सत्य इतिहास फिर लिखा जाएगा तो वास्तविक राष्ट्रनायकों का सम्मान होगा|
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द्वितीय विश्व युद्ध में जापान, इटली, और जर्मनी के विरुद्ध सभी मोर्चों पर लड़ते हुए मारे गए और मरवाए गए, तत्कालीन पराधीन भारत के सभी सैनिको को श्रद्धांजली देता हूँ| भगवान उन सबका और उनके परिवारों का कल्याण करे| १९४२ से भारतीय सेना के मुख्य सेनानायक फिल्ड मार्शल सर क्लाउड आचिनलेक (Claude Auchinleck) ने कहा था कि यदि भारतीय सेना नहीं होती तो अंग्रेज दोनों युद्धों (प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध) नहीं जीत पाते।
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वे तो बेचारे तो अपनी आजीविका के लिए सैनिक बने थे पर उन्हें क्या पता था कि उनकी मृत्यु विदेशी धरती पर विदेशियों के द्वारा होगी| उनके बलिदान के कारण ही हम आज स्वतंत्र होकर सम्मान से सिर ऊँचा कर के बैठे है|
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भारत माता की जय ! वन्दे मातरं ! जय जननी जय भारत ! जय श्री राम !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ मई २०२२
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(पुनश्च:) :--- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र सेनाबलों में भारतीय सेना सबसे बड़ी सेना थी। जब विश्वयुद्ध अपने चरम पर था तब २५ लाख से अधिक भारतीय सैनिक पूरे विश्व में अक्षीय-राष्ट्रों की सेनाओं से लड़ रहे थे। अंग्रेजों ने सिर्फ ८७ हजार से कुछ अधिक भारतीय सैनिकों की ही मृत्यु इस युद्ध में दिखाई थी, लेकिन वास्तविक संख्या इससे लगभग तिगुनी थी। १६ हज़ार से अधिक तो आज़ाद हिन्द फौज के ही सैनिक मारे गए थे, जिनकी कभी गिनती ही नहीं की गई। युद्ध की समाप्ति पर, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरा था। सभी देसी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की।
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अंग्रेजों ने भारत का सारा अनाज यूरोप भेज दिया था जिसके कारण भारत में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। बंगाल में ही लाखों लोग भूख से मारे गए। (अब बताया जाता है कि पूरे भारत में लगभग तीन करोड़ लोग भूख से मारे गए थे)
बिटिश भारतीय सेना ने इथियोपिया में इतालवी सेना के खिलाफ; मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया में इतालवी और जर्मन सेना के खिलाफ; और इतालवी सेना के आत्मसमर्पण के बाद इटली में जर्मन सेना के खिलाफ युद्ध किया था।
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अधिकांश बिटिश भारतीय सेना को जापानी सेना के खिलाफ लड़ाई में झोंक दिया गया था। सबसे पहले मलाया में हार और उसके बाद बर्मा से भारतीय सीमा तक पीछे हटने के दौरान; अंग्रेजों के रिकॉर्ड के अनुसार जापान से हुए युद्ध में ३६,००० से अधिक भारतीय सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी, ३४,३५४ से अधिक घायल हुए, और लगभग ६७,३४० सैनिक युद्ध में बंदी बना लिए गए। उनकी वीरता को ४,००० पदकों से सम्मानित किया गया और बिटिश भारतीय सेना के ३८ सदस्यों को विक्टोरिया क्रॉस या जॉर्ज क्रॉस प्रदान किया गया।
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वास्तव में प्रथम और द्वितीय दोनों ही विश्वयुद्ध भारत की सेनाओं द्वारा ही जीते गए थे। अंग्रेज़ कौम तो एक डरपोक कौम थी जिसे प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्कों ने, और द्वितीय विश्व युद्ध में जरमनों और जापानियों ने बहुत बुरी तरह मारा-पीटा था। अंग्रेजों की जान सदा भारतीयों ने ही बचाई। बिना भारतीयों के अंग्रेज़ युद्ध लड़ ही नहीं सकते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध की जीत का सारा श्रेय मैं वीर भारतीय सैनिकों को देता हूँ।

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