सफलताओं के बीज बोये जा चुके हैं, विफलताओं का मौसम, लौट कर बापस नहीं आना चाहिए ---
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हर समय विपरीत परिस्थितियों का प्रतिकार करते रहें। हमें किंचित भी निराश या विचलित नहीं होना चाहिए। कभी-कभी समय भी कुछ खराब चल रहा होता है। निराशा की कोई बात नहीं है। जैसे व्यक्तिगत कर्मफल होते हैं, उसी तरह सामूहिक कर्मफल भी होते हैं, जिन का परिणाम हमें भुगतना ही पड़ता है।
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जो भी समय हमारे पास है, उसमें हमें धैर्यपूर्वक अपना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक बल निरंतर बढाते रहना चाहिए। हमारी आध्यात्मिक शक्ति निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेगी। किसी से भी कोई अपेक्षा न रखें। जो करना है वह स्वयं ही करें। हर अपेक्षा दुःखदायी होती है, चाहे वह स्वयं से ही क्यों न हो।
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विफलताओं का मौसम अब लौट कर बापस नहीं आना चाहिए। सफलताओं के बीज बोये जा चुके हैं। हम अपने जीवन काल में ही देखेंगे कि भारत में एक परम वैभवशाली आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र का निर्माण होगा, जहाँ की राजनीति सत्य सनातन धर्म होगी। यह कार्य और किसी से नहीं, हम सब के सामूहिक प्रयासों से होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१४ अप्रेल २०२१
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