परमात्मा कौन है?
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हमने परमात्मा के बारे में तरह तरह की विचित्र कल्पनाएँ कर रखी हैं। परमात्मा -- अपने हाथ में डंडा लेकर किसी बड़े सिंहासन पर बैठा अकौकिक पुरुष नहीं है, जो अपनी संतानों को दंड और पुरस्कार दे रहा है। परमात्मा बुद्धि की समझ से परे अचिन्त्य है। उसकी अनुभूतियाँ उसकी कृपा से ही हो सकती हैं।
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यह सृष्टि परमात्मा का एक विचार मात्र है। हम भी परमात्मा के अंश हैं, अतः हमारे चारों ओर की सृष्टि हमारे विचारों का ही घनीभूत रूप है। हमारे विचार और सोच ही हमारे कर्म हैं। जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हमारे चारों ओर घटित होने लगता है, वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है।
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उस परम-तत्व से एकाकार होकर उसके संकल्प से जुड़कर ही हम कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। उस परम तत्व से जुड़ना ही सबसे बड़ी सेवा है जो कोई किसी के लिए कर सकता है।
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परमात्मा तो एक अगम अचिन्त्य परम चेतना है। हम उससे पृथक नहीं हैं। वह ही यह लीला खेल रहा है। कुछ लोग यह सोचते हैं कि परमात्मा ही सब कुछ करेगा और वह ही हमारा उद्धार करेगा। पर ऐसा नहीं है। हमारी उन्नत आध्यात्मिक चेतना ही हमारी रक्षा करेगी। यह एक ऐसा विषय है जिस पर चर्चा मात्र से कोई लाभ नहीं है।
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परमात्मा की ओर चलने के लिए जो मार्ग है, वह है -- सत्संग, परमप्रेम, शरणागति और समर्पण का। सत्संग, भक्ति और नियमित साधना करने से मार्गदर्शन मिलता है, पर यह सब हम को स्वयं करना पड़ता है, वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी स्वयं को ही पीना पड़ता है। दूसरे के पानी पीने से स्वयं की प्यास नहीं बुझती। कोई दूसरा हमें मुक्त करने नहीं आएगा। अपनी मुक्ति का मार्ग स्वयं को ही ढूंढना पड़ेगा।
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कोई भी शैतान, जिन्न, भूत-प्रेत, या दुरात्मा, हम को तब तक प्रभावित नहीं कर सकता; जब तक हम स्वयं ही यह नहीं चाहें। सारे दु:ख और कष्ट आते ही हैं, व्यक्ति को यह याद दिलाने के लिए कि वह गलत दिशा में जा रहा है। अपनी परिस्थितियों के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं, और स्वयं के प्रयास से ही मुक्त हो सकते हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
१४ अप्रेल २०१६
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