मुझ में लाखों कमियाँ, दोष और बुराइयाँ हैं| पापों की एक बहुत मोटी गठरी भी मेरे सिर पर लदी हुई है| लेकिन मुझे इन से कोई शिकायत नहीं हैं, मैं प्रसन्न हूँ, क्योंकि यह भगवान का दिया हुआ सामान है; उनकी अमानत है, जो मुझे उन को बापस भी लौटानी है| मेरे पास और कुछ है भी नहीं, यही सामान मेरे पास है| ये ही मेरे पत्र-पुष्प हैं, खाली हाथ नहीं हूँ|
"अँखियों पर झाईं पड़ी, पंथ निहार निहार| जिह्वा पर छाले पड़े, राम पुकार पुकार||"
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अब पता चल गया है कि तुम मेरे हृदय-मंदिर में ही छिपे हो. तुम्हारे सिवाय मेरा भी कोई अन्य ठिकाना नहीं है. 🌹🙏🕉🙏🌹
अब किसी से कुछ भी नहीं चाहिए. जहाँ देखो वहीं हमारे ठाकुर जी बिराजमान हैं.
ReplyDeleteकोई अन्य है ही नहीं, मैं भी नहीं| जय हो!
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