Sunday, 9 January 2022

भगवान का सामान ---

मुझ में लाखों कमियाँ, दोष और बुराइयाँ हैं| पापों की एक बहुत मोटी गठरी भी मेरे सिर पर लदी हुई है| लेकिन मुझे इन से कोई शिकायत नहीं हैं, मैं प्रसन्न हूँ, क्योंकि यह भगवान का दिया हुआ सामान है; उनकी अमानत है, जो मुझे उन को बापस भी लौटानी है| मेरे पास और कुछ है भी नहीं, यही सामान मेरे पास है| ये ही मेरे पत्र-पुष्प हैं, खाली हाथ नहीं हूँ|

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अभी इस समय तो भगवान मेरे ही हृदय में छिपे हुए हैं, उनके बाहर आते ही उनका सामान उनको लौटा दूँगा; साथ-साथ स्वयं को भी उन्हीं के हवाले कर दूँगा, क्योंकि उनके सिवाय मेरा भी कोई ठिकाना नहीं है|
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जय हो, प्रभु श्रीहरिः! कब तक छिपोगे? एक न एक दिन तो सामने आना ही पड़ेगा| आपकी जय हो, साथ-साथ आपके सभी प्रेमियों की भी जय हो|
🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
९ जनवरी २०२१

2 comments:

  1. "अँखियों पर झाईं पड़ी, पंथ निहार निहार| जिह्वा पर छाले पड़े, राम पुकार पुकार||"
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    अब पता चल गया है कि तुम मेरे हृदय-मंदिर में ही छिपे हो. तुम्हारे सिवाय मेरा भी कोई अन्य ठिकाना नहीं है. 🌹🙏🕉🙏🌹

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  2. अब किसी से कुछ भी नहीं चाहिए. जहाँ देखो वहीं हमारे ठाकुर जी बिराजमान हैं.
    कोई अन्य है ही नहीं, मैं भी नहीं| जय हो!
    🌹🙏🕉🕉🕉🌹🙏

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