अखंड आध्यात्मिक साधना कैसे हो? ---
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अखंड आध्यात्मिक साधना (Unbroken Spiritual Meditation) सरल से भी सरल, और संभव से भी अधिक संभव है| इसमें कुछ भी जटिलता नहीं है| एक ही शर्त है कि हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम (Integral and absolute love for the Divine) और सत्यनिष्ठा (sincerity) हो| बस, और कुछ भी नहीं चाहिए| जिन में परमप्रेम और सत्यनिष्ठा नहीं है, उन्हें यह लेख पढ़ने की आवश्यकता नहीं है|
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इसमें आरंभ रात्रि के ध्यान से करना होगा| रात्रि को सोने से पूर्व परमात्मा का गहनतम ध्यान कर के निश्चिंत होकर सोयें, वैसे ही जैसे एक बालक अपनी माँ की गोद में सोता है| सिर के नीचे तकिया नहीं, जगन्माता का वरद हस्त हो| दूसरे दिन का प्रारम्भ परमात्मा के गहनतम ध्यान से करें| पूरे दिन अपना कार्य यथावत् सामान्य ढंग से करें| बस यही भाव रखें कि जो भी काम आप कर रहे हैं, वह काम आप नहीं, बल्कि आपके माध्यम से भगवान स्वयं कर रहे हैं| भगवान को कर्ता बनाओ, स्वयं कर्ता मत बनो| बार बार यही भाव रखें कि आपके हरेक कार्य को भगवान ही करते हैं, आप तो निमित्त मात्र हैं| भगवान ही आपके पैरों से चल रहे हैं, आँखों से देख रहे हैं, हाथों से काम कर रहे हैं, हृदय में धडक रहे हैं| आपके हर काम को भगवान ही कर रहे हैं|
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इस का लाभ यह होगा कि मृत्यु के समय भगवान ही आपको याद करेंगे| आपको उन्हें याद करने की चिंता नहीं करनी होगी| रात्रि में जब आप शयन कर रहे होंगे तब जगन्माता स्वयं जाग कर आप की रक्षा कर रही होगी|
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भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भी हमें निमित्त मात्र बनने का आदेश देते हैं ---
"जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||११:३३||"
अर्थात् इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो| ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं| हे सव्यसाचिन्! तुम केवल निमित्त ही बनो||
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भगवान ने अर्जुन को "सव्यसाचि" इसलिए कहा क्योंकि अर्जुन को दोनों हाथों से बाण चलाने का अभ्यास था| कूटस्थ हृदय में बिराजमान मेरे गुरु महाराज मुझे इसी समय यह उपदेश दे रहे हैं कि जब हमारी साँसें दोनों नासिकाओं से चल रही हों, उस समय हम भी सव्यसाचि हैं| जिस समय सांसें दोनों नासिकाओं से चल रही हों, वह साधना की सिद्धी का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है| उस समय कूटस्थ सूर्य-मण्डल में परमपुरुष भगवान श्रीहरिः का ध्यान करते हुये, सुषुम्ना के सब चक्रों में प्रवाहित हो रहे प्राण-प्रवाह के प्रति भी सजग रहो| (आगे की बातें व्यक्तिगत और गोपनीय हैं).
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सब को मेरा हार्दिक नमन !! सब का कल्याण हो !!
कृपा शंकर
१० जनवरी २०२१
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