खूब कमाओ, खाओ, और एकत्र करो, व एक दिन संसार से विदा हो जाओ ---
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यह मेरी सोच नहीं है, लेकिन इस काल की आधुनिक सोच के अनुसार तो रुपया-पैसा बनाना ही परमधर्म है। उचित/अनुचित किसी भी तरीके से जो जितना रुपया-पैसा बनाता है, वह इस संसार में उतना ही सफल माना जाता है। खूब रुपया बनाओ, और बनाते बनाते उसे एकत्र कर के मर जाओ। संसार ऐसे व्यक्ति को ही यश देता है। भगवान की बात करना पिछड़ापन और पुराने जमाने के फालतू लोगों का काम है। भगवान एक उपयोगिता का माध्यम यानि साधन मात्र है जो हमें और भी अधिक खूब धन देता है। भगवान धन नहीं दे तो उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। खूब कमाओ, खाओ और मर जाओ -- यह ही आधुनिक सोच है। मेरे जैसे गलत आदमी को इस संसार में नहीं होना चाहिए था। मैं स्वयं में ही प्रसन्न हूँ।
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पुनश्च :-- मैंने स्कूल जाने वाले अनेक बालकों से पूछा कि आपकी पढ़ाई-लिखाई का क्या उद्देश्य है? सबका एक ही उत्तर था -- 'बड़े होकर खूब पैसा कमाना"। लगता है धर्मशिक्षाविहीन अंग्रेजी पढ़ाई में हम पूरी तरह रंग गए हैं। समय ही खराब है। लेकिन इतनी तो भारत की आत्मा में मेरी आस्था है कि एक न एक न एक दिन वह अवश्य जागृत होगी, और भारत विजयी होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२८ नवंबर २०२१
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