पूर्व जन्मों के आचार्यों की कृपा ---
----------------------------
मुझ अकिंचन पर पूर्व जन्मों के आचार्यों की बड़ी कृपा रही है। कई गोपनीय बातें हैं, जो निषेधात्मक कारणों से बताई नहीं जा सकतीं, लेकिन यह सत्य है कि सूक्ष्म जगत की कुछ महान आत्माओं ने सदा मेरा मार्गदर्शन किया है, और अब इसी समय भी कर रही हैं। समय समय पर उन्होनें मेरी रक्षा भी की है। भगवान की कृपा से थोड़ा-बहुत सत्संग जो आप सब महात्माओं के साथ हो जाता है, वह पूर्व जन्मों के आचार्य चरणों की ही कृपा है।
.
जब तक मनुष्य स्वयं को यह शरीर, और संसार को अपना मानता है, तब तक वह एक भक्त और योगी नहीं हो सकता। भोगी मनुष्य भगवत्प्रेम का अधिकारी नहीं होता, वह सिर्फ सेवक हो सकता है। जिन का आचरण पवित्र है, उन्हीं के चरण पूज्य हैं। एक बहुत बड़ा रहस्य है --
यदि हम परमात्मा को निरंतर अपनी स्मृति में रखते हैं, और वे हमारे साथ हैं, तो भूलवश कोई पाप भी हमारे से हो जाये, तो वह प्रकृति द्वारा क्षमा कर दिया जाता है। भगवान के अनुग्रह में बड़ा सामर्थ्य है। हमारी हिमालय से भी बड़ी बड़ी भूलें उनके कृपा-सिंधु में एक साधारण छोटे कंकर-पत्थर से अधिक नहीं है। वे वहाँ भी शोभा दे रही हैं।
.
खूब स्मरण करो, खूब प्राणायाम करो, खूब स्वाध्याय, सत्संग और ध्यान करो, -- इन सब का लक्ष्य हमें समर्पण के योग्य बनाना है। अपरिछिन्न ब्रह्म से एकाकार होना ही हमारा सत्य सनातन धर्म है, जो हमें स्वतंत्र और मुक्त कर सकता है।
.
सभी संत आचार्य महात्माओं के चरण कमलों में मेरा कोटि कोटि नमन !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०२१
आचार्य सियारामदास नैयायिक
ReplyDeleteअत्युत्तम । अनुभूतियों को बतलाना भी हो तो अन्य का नाम लेकर बताया जा सकता है यदि आवश्यक लगे। अपनी अनुभूति जब अपने नाम के साथ जुड़ती है तब मार्गावरोध होता है भगवन्।
भगवान ने मुझे यह शरीर, मन, बुद्धि, और पता नहीं क्या क्या दिया है !! लेकिन यह असत्य है, और मेरा एक भ्रम मात्र है।
ReplyDeleteपूरी सृष्टि के माध्यम से वे स्वयं को ही व्यक्त कर रहे हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। स्वयं भगवान ही यह व्यक्ति बन गए हैं। सभी जड़-चेतन उन्हीं के मन की कल्पनाएं हैं। मैं नहीं, मेरा नहीं, --- सब कुछ वे ही हैं।