यह संसार ..... आत्मा से परमात्मा के बीच की यात्रा में एक रंगमंच मात्र है| इस रंगमंच पर अपना भाग ठीक से अदा नहीं करने तक बार बार यहीं लौट कर आना पड़ता है| माया के आवरण से परमात्मा दिखाई नहीं देते| यह आवरण विशुद्ध भक्ति से ही हटेगा जिसके हटते ही इस नाटक का रचेता सामने दिखाई देगा| सारे विक्षेप भी भक्ति से ही दूर होंगे| प्रभु के श्रीचरणों में शरणागति और पूर्ण समर्पण ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है| गहन से गहन निर्विकल्प समाधी में भी आत्मा को वह तृप्ति नहीं मिलती जो विशुद्ध भक्ति में मिलती है| .मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि ..... पराभक्ति ही है|
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हे प्रभु, हमें अपने ध्यान से विमुख मत करो| हमारा यह देह रुपी साधन सदा स्वस्थ और शक्तिशाली रहे, हमारा ह्रदय पवित्र रहे, व मन सब प्रकार की वासनाओं से मुक्त रहे| हमें सदा के लिए अपनी शरण में ले लो| हर प्रकार की परिस्थितियों से हम ऊपर उठें और स्वयं की कमजोरियों के लिए दूसरों को दोष न दें| हमें अपनी शरण में लो ताकि हमारा समर्पण पूर्ण हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
८ सितंबर २०१९
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पुनश्च :---
जीवन अपनी पूर्णता यानि परम शिवत्व में जागृति है, कोई खोज नहीं| परम शिवत्व ही हमारी शाश्वत जिज्ञासा और गति है| हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारे मन का लोभ और गलत विचार हैं| जिसे हम खोज रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| जीवन में यदि किसी से मिलना-जुलना ही है तो अच्छी सकारात्मक सोच के लोगों से ही मिलें, अन्यथा परमात्मा के साथ अकेले ही रहें| हम परमात्मा के साथ हैं तो सभी के साथ हैं, और सर्वत्र हैं| भगवान ने हमें विवेक दिया है, जिसका उपयोग करते हुए अपनी वर्तमान परिस्थितियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, वह कार्य निज विवेक के प्रकाश में करें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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हे प्रभु, हमें अपने ध्यान से विमुख मत करो| हमारा यह देह रुपी साधन सदा स्वस्थ और शक्तिशाली रहे, हमारा ह्रदय पवित्र रहे, व मन सब प्रकार की वासनाओं से मुक्त रहे| हमें सदा के लिए अपनी शरण में ले लो| हर प्रकार की परिस्थितियों से हम ऊपर उठें और स्वयं की कमजोरियों के लिए दूसरों को दोष न दें| हमें अपनी शरण में लो ताकि हमारा समर्पण पूर्ण हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
८ सितंबर २०१९
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पुनश्च :---
जीवन अपनी पूर्णता यानि परम शिवत्व में जागृति है, कोई खोज नहीं| परम शिवत्व ही हमारी शाश्वत जिज्ञासा और गति है| हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारे मन का लोभ और गलत विचार हैं| जिसे हम खोज रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| जीवन में यदि किसी से मिलना-जुलना ही है तो अच्छी सकारात्मक सोच के लोगों से ही मिलें, अन्यथा परमात्मा के साथ अकेले ही रहें| हम परमात्मा के साथ हैं तो सभी के साथ हैं, और सर्वत्र हैं| भगवान ने हमें विवेक दिया है, जिसका उपयोग करते हुए अपनी वर्तमान परिस्थितियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, वह कार्य निज विवेक के प्रकाश में करें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!