Wednesday, 14 November 2018

मेरे जीवन की सारी आध्यात्मिक साधनाओं का सार "है" शब्द है ...

मेरे जीवन की सारी आध्यात्मिक साधनाओं का सार "है" शब्द है ...
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भगवान इसी समय, स्थायी रूप से हर समय, यहीं पर और सर्वत्र "है"| भगवान "है"| इस "है" से अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है, सब कुछ इसी "है" शब्द में है, इस से बाहर कुछ भी नहीं है| यह "है" शब्द कोई सैद्धांतिक कल्पना नहीं, बल्कि मेरे पूरे जीवन की आध्यात्मिक साधना के अनुभवों का निचोड़ है| इस "है" शब्द के साथ प्रणव यानि "ॐ" को और जोड़ लो तो "हं" (मानसिक उच्चारण में "हौं" हो जाता है)| इसी में सारी सृष्टि समाहित है| इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| "स" का अर्थ है "वह"| इन्हीं दो शब्दों से एक शब्द बनता है .... "हंसः" या "सोहं"| यही अजपा-जप है, यही हंस-गायत्री है, यही सारी आध्यात्मिक साधनाओं का सार और आधार है|
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भगवान की प्रेरणा से मैं जो कुछ भी लिख रहा हूँ यदि इसमें कोई अनुचित है या पाप है तो वह मेरी जिम्मेदारी है| अतः निश्चिन्त रहें, आपको कोई पाप-पुण्य या दोष नहीं लगेगा| मैं जिस चेतना में लिख रहा हूँ, उस चेतना में भगवान मेरे साथ हैं, और उन्हीं की कृपा से मैं यह सब लिख पा रहा हूँ| कोई पाप या पुण्य है तो वह परमात्मा का है, किसी अन्य का नहीं|
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हम यह शरीर नहीं हैं| यह शरीर तो इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ मात्र एक वाहन है जिस पर हम यह लोकयात्रा कर रहे हैं| यह शरीर एक "मोटर साइकिल" है जो हमें भगवान ने दी है| इस "मोटर साइकिल" के साथ हमारी चेतना जुड़ी हुई है| समय के साथ यह "मोटर साइकिल" तो यहीं रह जायेगी, पर इसके माध्यम से किये हुए सारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल हमारी चेतना के साथ ही जुड़ा रहेगा|
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हम यह शरीर नहीं हैं, तो हैं कौन? कर्ता कौन है? हम क्या हैं? समर्पण क्या है? निष्कामता क्या है? :---
एक अनंत ज्योतिर्मय विस्तार है जिसमें सारी सृष्टि समाई हुई है| ये चांद-तारे, ये ग्रह-नक्षत्र और सारी आकाशगंगाएँ उसी ज्योतिर्मय विस्तार में हैं| उस के अतिरिक्त अन्य कोई या कुछ भी नहीं है| यह ज्योतिर्मय विस्तार ही परमात्मा है, और वही हम हैं| हम उस से पृथक नहीं हैं| स्वयं को यह शरीर मानना और इस शरीर की सुविधाओं को जोड़ने के लिए ही दिन-रात लगे रहना ..... सारे पापों का की जड़ है|
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(अभी मुझे इतना ही लिखने की प्रेरणा मिल रही है| यह लेख अधूरा है, जिसे कभी बाद में पूरा करूंगा).
आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ नवम्बर २०१८

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