Tuesday, 22 May 2018

मन भगवान में मग्न हो जाये .....

मन भगवान में मग्न हो जाये .....
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सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि, सारी अनंतता मेरी देह है, जिस के माध्यम से स्वयं परमात्मा साँसें ले रहे हैं| मैं नहीं हूँ, मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, सब कुछ परमात्मा ही है| मैं तो निमित्त मात्र हूँ, यह निमित्त भी परमात्मा ही हैं| मेरी पृथकता का बोध एक भ्रम है|
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सर्वव्यापी अनंत विराट पुरुष इन साँसों के माध्यम से स्वयं को ही याद करते हैं| साँसें चल रही हैं, यह भगवान का अनुग्रह है| "सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो" ... ये भगवान श्रीराम के वचन हैं|
रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में भगवान श्रीराम अपनी प्रजा को जो उपदेश देते हैं, उनमें से कुछ चौपाइयाँ संकलित हैं .....
"नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो | सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ||
करनधार सदगुर दृढ़ नावा | दुर्लभ साज सुलभ करि पावा ||"
भावार्थ:- यह मनुष्य का शरीर भवसागर (से तारने) के लिए बेड़ा (जहाज) है| मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है| सदगुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेने वाले) हैं| इस प्रकार दुर्लभ (कठिनता से मिलने वाले) साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपा से सहज ही) उसे प्राप्त हो गए हैं ||
"जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ |
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ||"
भावार्थ:- जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न और मंद बुद्धि है और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है ||
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सोsहं -हँसः का अजपा-जप निरंतर चलता रहे और कूटस्थ अक्षर प्रणव की जो ध्वनि सुन रही है, वह निरंतर सजगता से सुनती रहे| उसी में मन मग्न हो जाए|
अनंत में उन विराट पुरुष की अनुकम्पा ही प्राणों का सञ्चलन कर रही है, और साथ साथ सुषुम्ना में प्राण ऊर्जा को ऊपर-नीचे परिक्रमा करा कर सुषुम्ना के चक्रों को जागृत कर रही है|
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अब कुछ करने को है ही नहीं, सारी क्रियाएँ तो स्वयं भगवान परमशिव कर रहे हैं| हे प्रभु आपको नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मई २०१८

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