परमात्मा ही समस्या हैं और वे ही समाधान हैं .....
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परमात्मा ही समस्याओं के रूप में आते हैं, और वे ही समाधान हैं| किसी भी व्यक्ति के सामने उतनी ही समस्याएँ आती हैं जिनका भार वह वहन कर सके, उससे अधिक नहीं| हमारी सबसे बड़ी समस्या है .... परमात्मा से पृथकता का बोध| सारी आध्यात्मिक साधनाएँ इस पृथकता के बोध को समाप्त कराने के लिए ही हैं| सारे बंधन हमारे मन के कारण ही हैं, और उनसे मुक्ति का साधन भी हमारा मन ही है|
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विकट से विकट संकट का समाधान है ..... "सदा साक्षी भाव" और उससे भी परे की स्थिति| साक्षी भी परमात्मा हैं और कर्ता व भोक्ता भी वे ही हैं| अपना जीवन उन्हें सौंप दो, उन्हें जीवन का केंद्र बिंदु ही नहीं समस्त जीवन का आश्रय बनाओ| सब समस्याएँ तिरोहित होने लगेंगी| हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, अस्तित्व है तो सिर्फ परमात्मा का ही है| स्वयं को परमात्मा से पृथक समझना एक धोखा है| इस पृथकता के बोध को समाप्त करो|
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सारी समस्याओं का निदान है .... परमात्मा को पूर्ण समर्पण| सारी समस्याएँ भी वो ही है और समाधान भी वो ही होगा| उसी पर ध्यान करते रहो, उसी को कर्ता और भोक्ता बनाओ| गहराई में उतरो, आगे के मार्ग को पार करना उसी का काम है| कोई अपेक्षा मत रखो, कोई कामना मत करो| गीता का नियमित अध्ययन अवश्य करो| भगवान निश्चित रूप से इस अज्ञान रूपी भवसागर से पार करा देंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मई २०१३
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परमात्मा ही समस्याओं के रूप में आते हैं, और वे ही समाधान हैं| किसी भी व्यक्ति के सामने उतनी ही समस्याएँ आती हैं जिनका भार वह वहन कर सके, उससे अधिक नहीं| हमारी सबसे बड़ी समस्या है .... परमात्मा से पृथकता का बोध| सारी आध्यात्मिक साधनाएँ इस पृथकता के बोध को समाप्त कराने के लिए ही हैं| सारे बंधन हमारे मन के कारण ही हैं, और उनसे मुक्ति का साधन भी हमारा मन ही है|
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विकट से विकट संकट का समाधान है ..... "सदा साक्षी भाव" और उससे भी परे की स्थिति| साक्षी भी परमात्मा हैं और कर्ता व भोक्ता भी वे ही हैं| अपना जीवन उन्हें सौंप दो, उन्हें जीवन का केंद्र बिंदु ही नहीं समस्त जीवन का आश्रय बनाओ| सब समस्याएँ तिरोहित होने लगेंगी| हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, अस्तित्व है तो सिर्फ परमात्मा का ही है| स्वयं को परमात्मा से पृथक समझना एक धोखा है| इस पृथकता के बोध को समाप्त करो|
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सारी समस्याओं का निदान है .... परमात्मा को पूर्ण समर्पण| सारी समस्याएँ भी वो ही है और समाधान भी वो ही होगा| उसी पर ध्यान करते रहो, उसी को कर्ता और भोक्ता बनाओ| गहराई में उतरो, आगे के मार्ग को पार करना उसी का काम है| कोई अपेक्षा मत रखो, कोई कामना मत करो| गीता का नियमित अध्ययन अवश्य करो| भगवान निश्चित रूप से इस अज्ञान रूपी भवसागर से पार करा देंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मई २०१३
हरेक व्यक्ति अपना अपना भाग्य लेकर अपने विगत जन्मों के कर्म-फलों को भोगने के लिए जन्म लेता है| साथ साथ वह नए कर्मों की सृष्टि भी करता है| प्रारब्ध कर्म तो सब को भोगने ही पड़ते हैं| अतः किस किस की चिंता करें? चिंता सिर्फ समष्टि की ही करनी चाहिए| प्रार्थना भी समष्टि के कल्याण की करनी चाहिए| यह सृष्टि परमात्मा की है, वह अपनी सृष्टि को चलाने में सक्षम है, उसे हमारे सुझावों की आवश्यकता नहीं है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
ReplyDeleteकृपा शंकर
२२ मई २०१८