वैवाहिक जीवन के ४५ वर्ष आज पूरे हो गये हैं .....
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कभी शांति, कभी गोलीबारी, कभी युद्धविराम और फिर शांति .... सांसारिक जीवन के बहुत सारे उतार-चढ़ाव और परस्पर विरोधी व अनुकूल विचारधाराओं के संघर्ष, तालमेल एवं समझौतों को ही वैवाहिक जीवन कह सकते हैं| यह कितना सफल और कितना विफल रहा, यह तो सृष्टिकर्ता परमात्मा ही जानते हैं|
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एक आदर्श आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अनुसार जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ अपनी चेतना में अपने परिवार को अपने साथ लेकर परमात्मा की उपासना करता है| और भी गहराई में जातें हैं तब पाते हैं कि वास्तव में सारी सृष्टि ही अपना परिवार है और सारा ब्रह्मांड ही अपना घर| हम यह सम्पूर्ण समष्टि हैं, भौतिक देह नहीं| एक मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है, मेरा न जन्म है और न मृत्यु, मैं शाश्वत हूँ|
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पाश्चात्य दृष्टिकोण से यह एक आश्चर्य और उपलब्धि है कि कोई विवाह इतने लम्बे समय तक निभ जाए| भारतीय दृष्टिकोण से तो अब से बहुत पहिले ही वानप्रस्थ आश्रम का आरम्भ हो जाना चाहिए था जो नहीं हो पाया| वर्णाश्रम धर्म तो वर्तमान में एक आदर्श और अतीत का विषय ही होकर रह गया है| कई बाते हैं जो हृदय की हृदय में ही रह जाती हैं, कभी उन्हें अभिव्यक्ति नहीं मिलती| यह सृष्टि और उसका संचालन जगन्माता का कार्य है| जैसी उनकी इच्छा हो वह पूर्ण हो|
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हे प्रभु, हे जगन्माता, हमारा समर्पण पूर्ण हो, किसी प्रकार की कोई कामना, मोह और अहंकार का अवशेष ना रहे| हमारा अच्छा-बुरा जो भी है वह संपूर्ण आपको समर्पित है| हमारा समर्पण स्वीकार करो| || ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव ||
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सभी को साभार धन्यवाद और नमन ! आप सब की कीर्ति और यश अमर रहे | भगवान परमशिव का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे | ॐ ॐ ॐ ||
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कभी शांति, कभी गोलीबारी, कभी युद्धविराम और फिर शांति .... सांसारिक जीवन के बहुत सारे उतार-चढ़ाव और परस्पर विरोधी व अनुकूल विचारधाराओं के संघर्ष, तालमेल एवं समझौतों को ही वैवाहिक जीवन कह सकते हैं| यह कितना सफल और कितना विफल रहा, यह तो सृष्टिकर्ता परमात्मा ही जानते हैं|
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एक आदर्श आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अनुसार जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ अपनी चेतना में अपने परिवार को अपने साथ लेकर परमात्मा की उपासना करता है| और भी गहराई में जातें हैं तब पाते हैं कि वास्तव में सारी सृष्टि ही अपना परिवार है और सारा ब्रह्मांड ही अपना घर| हम यह सम्पूर्ण समष्टि हैं, भौतिक देह नहीं| एक मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है, मेरा न जन्म है और न मृत्यु, मैं शाश्वत हूँ|
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पाश्चात्य दृष्टिकोण से यह एक आश्चर्य और उपलब्धि है कि कोई विवाह इतने लम्बे समय तक निभ जाए| भारतीय दृष्टिकोण से तो अब से बहुत पहिले ही वानप्रस्थ आश्रम का आरम्भ हो जाना चाहिए था जो नहीं हो पाया| वर्णाश्रम धर्म तो वर्तमान में एक आदर्श और अतीत का विषय ही होकर रह गया है| कई बाते हैं जो हृदय की हृदय में ही रह जाती हैं, कभी उन्हें अभिव्यक्ति नहीं मिलती| यह सृष्टि और उसका संचालन जगन्माता का कार्य है| जैसी उनकी इच्छा हो वह पूर्ण हो|
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हे प्रभु, हे जगन्माता, हमारा समर्पण पूर्ण हो, किसी प्रकार की कोई कामना, मोह और अहंकार का अवशेष ना रहे| हमारा अच्छा-बुरा जो भी है वह संपूर्ण आपको समर्पित है| हमारा समर्पण स्वीकार करो| || ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव ||
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सभी को साभार धन्यवाद और नमन ! आप सब की कीर्ति और यश अमर रहे | भगवान परमशिव का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे | ॐ ॐ ॐ ||
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१९ मई २०१८
कृपा शंकर
१९ मई २०१८
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