Thursday, 10 May 2018

मेरी एकमात्र प्रसन्नता .....

मेरी एकमात्र प्रसन्नता .....
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मुझे प्रसन्नता सिर्फ परमात्मा के ध्यान में ही मिलती है| यही मेरा एकमात्र मनोरंजन है| मैं अपनी प्रसन्नता के लिए भगवान के ध्यान पर ही निर्भर हूँ| अन्य किसी विषय में मेरी रूचि अब नहीं रही है| जब कभी भगवान का ध्यान नहीं होता तब अत्यधिक भयंकर पीड़ा होती है|
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मैं अधिकांशतः अकेला ही रहता हूँ| मिलने जुलने की इच्छा सिर्फ उन्हीं लोगों से होती है जिनके ह्रदय में कूट कूट कर भगवान के प्रति प्रेम भरा हुआ है| अन्य लोगों से मिलना बड़ा दुखदायी है| सिर्फ सामाजिकता के नाते महीने में एक या दो बार थोड़े समय के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से भगवान मिला देते हैं|
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परमात्मा की उपस्थिति का निरंतर आभास ही मेरा आनंद है और यही मेरा मनोरंजन| चला कर मैं अब किसी से भी नहीं मिलता| किसी से कोई लेना-देना नहीं है| मैं प्रसन्न हूँ|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० मई २०१८

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