Thursday, 10 May 2018

सबसे बड़ी सेवा जो हम इस मनुष्य देह में कर सकते हैं .....

सबसे बड़ी सेवा जो हम इस मनुष्य देह में कर सकते हैं .....
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सबसे बड़ी सेवा परम तत्व परमात्मा का साक्षात्कार है, जो वास्तव में हम हैं| यह सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं| हम यह देह नहीं हैं, अपनी उच्चतर चेतना में स्वयं परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति, उसकी पूर्णता और अनंतता हैं| अपनी उच्चतम चेतना में हम स्वयं प्रभु के साथ एक हैं, स्वयं परमात्मा हैं| इसकी अनुभूति तभी हो सकती है जब हम नित्य नियमित रूप से गहन ध्यान साधना करें| हर साँस के साथ यह भाव करें कि हम परमात्मा की अनंतता यानि सर्वव्यापकता हैं| हर साँस के साथ हम उस परम ज्योतिर्मय चेतना से एकाकार हो रहे हैं, और वह चेतना अवतरित होकर समस्त सृष्टि को ज्योतिर्मय बना रही है| पृष्ठभूमि में प्रणव ध्वनि यानि अनाहत नाद को भी सुनते रहें| ||"सो" "हं"|| || ॐ SSSSS || यही अजपा-जप है|
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जो नित्य नियमित ध्यान नहीं करते वे सौ जन्म में भी इसे नहीं समझ सकते, क्योंकि यह बुद्धि का नहीं, अनुभूति का विषय है| ऐसे लोगों के लिए मेरे पास बिलकुल भी समय नहीं है, वे मेरा समय खराब न करें|
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निम्न प्रकृति की चिंता न करें जो बार बार खींच कर नीचे ले आती है| जितना अधिक हम अपनी उच्चतर प्रकृति में रहेंगे, निम्न प्रकृति का प्रभाव कम होता चला जाएगा|
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जो भी साधना हम करते हैं वह वास्तव में हम नहीं, साक्षात परमात्मा स्वयं कर रहे हैं| यह मनुष्य देह, परमात्मा का एक उपकरण मात्र है| मोक्ष की कामना सबसे बड़ा बंधन है| मोक्ष की हमें कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आत्मा तो नित्य मुक्त है| बंधन केवल भ्रम हैं|
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ईश्वर को पूर्ण समर्पण करणा होगा| सारी कामना, वासना, माँगें, राय और विचार सब उन्हें समर्पित करने होंगे तभी वे स्वयं सारी जिम्मेदारी लेंगे| कर्म-फल ही नहीं कर्म भी उन्हें समर्पित करने होंगे| समूचे ह्रदय और शक्ति के साथ स्वयं को उनके हाथों मे सौंप देना होगा| कर्ता ही नहीं दृष्टा भी उन्हें ही बनाना होगा, तभी वे सारी कठिनाइयों और संकटों से पार करायेंगे| किसी तरह का सात्विक अहंकार भी नहीं रखना है| वे जो भी करेंगे वह सर्वश्रेष्ठ होगा| यही सबसे बड़ा कर्तव्य और सबसे बड़ी सेवा है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ मई २०१८

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