Thursday, 10 May 2018

हमारा अस्तित्व ही परमात्मा का अस्तित्व है ......


हमारा अस्तित्व ही परमात्मा का अस्तित्व है ......
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इस विषय पर क्या लिखूं ? वाणी मौन हो जाती है | बचता है सिर्फ और सिर्फ 'अनिर्वचनीय अहैतुकी परम प्रेम'| इस विषय पर चिन्तन करने वाला स्वयं ही प्रेममय यानि प्रत्यक्ष 'प्रेम' हो जाता है |

क्या भगवान कहीं दूर हैं? नहीं नहीं बिलकुल नहीं| किसी को देखने, समझने या अनुभूत करने के लिए कुछ तो दूरी चाहिए| पर जहाँ कोई दूरी नहीं हो, जो निकटतम से भी निकट हो उसे कैसे जान सकते हैं? बुद्धि यहाँ विफल हो जाती है|

हमारी आँखें क्या हमारे प्राणों को देख सकती है? हमारी चेतना क्या उसको अनुभूत कर सकती है? कदापि नहीं | जो हमारे प्राणों का भी प्राण है उसे हम कैसे जान सकते हैं? सिर्फ अपने अहं का समर्पण कर के और स्वयं परमप्रेममय होकर ..... बस इस के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है |

वह कौन है जो हमारे ह्रदय में धड़क रहा है? हमारीआँखों से देख रहा है? हमें जीवंत रखे हुए है? उस का अस्तित्व ही हमारा अस्तित्व है और हमाराअस्तित्व ही उसका अस्तित्व है|

यह सम्पूर्ण अस्तित्व ही परमात्मा है और उसकी सर्वव्यापकता ही हमाराअस्तित्व है| हम यह देह नहीं उसके परम प्रेम की एक अभिव्यक्ति मात्र हैं | हम स्वयं वह परम प्रेम हैं |

उसके चैतन्य में जीना ही जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देष्य है | अन्य कोई उद्देष्य नहीं है |

आप सब निज दिव्यात्माओं को मेरा सादर नमन|
ॐ नमो नारायण ! शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | ॐ शिव |
कृपा शंकर
११ मई २०१४

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