Thursday 15 March 2018

अपनी मनोभूमि में कचरा न डालें .....

अपनी मनोभूमि में कचरा न डालें .....
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जब हम कोई सुन्दर फूलों और मनोहारी पौधों का बगीचा लगाते हैं तो उसमें कंकर पत्थर नहीं डालते| बगीचे में जो कंकर पत्थर हैं उनको भी बाहर ही फेंकते हैं| जब कोई अति अति विशिष्ठ अतिथि आता है तब तो उस बगीचे को विशेष रूप से स्वच्छ रखते हैं| हमारी मनोभूमि भी एक बगीचा है जिसमें हम सुन्दर दिव्य विचारों और भावों के पुष्प लगाते हैं| अति अति विशिष्ठ अतिथि परमात्मा को वहाँ निमंत्रित करते हैं तो स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है|
हम क्या पढ़ते हैं, क्या देखते हैं और कैसे लोगों से मिलते हैं इसका प्रभाव हमारे मानस पर पड़े बिना नहीं रहता| आजकल टीवी पर आने वाले अधिकाँश कार्यक्रम और समाचार चैनलों से जो दिखाया और सुनाया जाता है वह एक बौद्धिक कचरे से अधिक नहीं है| कुछ अपवादों को छोड़कर टीवी के समाचार चैनलों पर दिखाए जा रहे उस कचरे से अपने आप को दूर रखो|
आपका बगीचा बहुत सुन्दर है उसमें कचरा डाल कर उसे प्रदूषित ना करें|
धन्यवाद!
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
१६ मार्च २०१६

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