Thursday, 15 March 2018

"हिंसा" और "अहिंसा" के मध्य की विभाजन रेखा क्या है? .....

"हिंसा" और "अहिंसा" के मध्य की विभाजन रेखा क्या है? .....
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इसे समझने के लिए एक स्वतंत्र चेतना का होना अनिवार्य है| शब्दों की सीमा में रहते हुए इसे समझा नहीं जा सकता| सामने खड़ा जो किसी को देना चाहे वह उसको यानि देने वाले को स्वतः ही प्राप्त हो जाए, यही हिंसा और अहिंसा के मध्य की विभाजन रेखा है|
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अतिथि देवो भवः | अतिथि जिस कामना से आया है उस कामना को वह स्वयं प्राप्त हो, यही हिंसा और अहिंसा के मध्य का अंतर है| हिंसा और अहिंसा का भाव अतिथि का है, हमारा नहीं| उसकी माँग के अनुसार उसकी आपूर्ति करना हमारा धर्म है| वह हिंसा या अहिंसा जो भी चाहता है उसकी आपूर्ति करने में कोई अधर्म नहीं है|
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यदि कोई मुझे मृत्यु देने आ रहा है, यानि उसने मेरी मृत्यु चाही है, तो उसे मृत्यु देना अहिंसा ही है, क्योंकि उसने मेरी मृत्यु चाही है| जो उसने चाहा है वह ही उसको मिल रहा है| यह कोई हिंसा नहीं, अहिंसा ही है| सीमित परम्पराओं को ढोते हुए हम कब तक उन के दास बने रहेंगे? गुलामी का जीवन हमें स्वीकार्य नहीं होना चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मार्च २०१८

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पुनश्चः :---- यहाँ बात हो रही है हिंसा और अहिंसा के मध्य की विभाजन रेखा की | मेरी एक बहुत पुरानी पोस्ट में मैनें लिखा था कि .... "आत्मका अज्ञान ही सबसे बड़ी हिंसा है" | "कर्ताभाव का अभाव अहिंसा है और कर्ताभाव हिंसा है" |

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