पतंग उड़ता है, उड़ते ही रहना चाहता है, पर उसके पीछे एक डोर बंधी रहती है जो
उसे खींच कर बापस ले आती है| वैसे ही हर आध्यात्मिक साधक साधनाकाल की
अनुभूतियों में ही रहते हुए और भी आगे की अनंतता में जाना चाहता है, पर
उसके प्रारब्ध कर्मफलों की डोर उसे खींच कर बापस ले आती है| वह असहाय हो
जाता है| इन प्रारब्ध कर्मफलों से मुक्त तो भगवान की परम कृपा ही कर सकती
है| भगवान का अनुग्रह ही हमें मुक्त कर सकता है, अन्य कुछ नहीं| वे
भक्तवत्सल भगवान करुणावश हमें भी इन बंधनों से मुक्त करें|
उन्हें प्रेम डोरी से हम बाँध लेंगे, तो फिर वो कंहाँ भाग जाया करेंगे |
उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वही मेरे संकट मिटाया करेंगे ||
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१५ मार्च २०१८
उन्हें प्रेम डोरी से हम बाँध लेंगे, तो फिर वो कंहाँ भाग जाया करेंगे |
उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वही मेरे संकट मिटाया करेंगे ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१५ मार्च २०१८
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