Thursday 11 January 2018

मेरी कन्या का विवाह ....

मेरी कन्या का विवाह ....
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मेरी एक कन्या है जो बहुत ही अच्छे कुल की व सतोगुण के सर्वश्रेष्ठ संस्कारों से संपन्न है| अब वह विवाह के योग्य हो गयी है, और बिना विवाह के नहीं रह सकती| उसके लिए वर भी उस के अनुरूप अति गुणवान चाहिए| वह वर कौन हो सकता है? मेरी कन्या को संसारी पदार्थों से विरक्ति हो चुकी है| संसारी सुख के भोगों में उसकी रूचि नहीं रही है| पर उसका विवाह तो मुझे करना ही पड़ेगा|
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पूरी सृष्टि में उस के अनुरूप वर एक ही है, जिसका कोई विकल्प नहीं है| अतः उसी वर के साथ उसका पाणिग्रहण करना ही पड़ेगा| बहुत अच्छी कन्या है तो वर स्वीकार क्यों नहीं करेंगे? स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा| मेरी कन्या भी तो उसी वर के लिए तड़प रही है| उसे और कुछ भी नहीं चाहिए|
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वह कन्या और कोई नहीं मेरी अपनी निज "बुद्धि" है| और वे वर और कोई नहीं स्वयं साक्षात् सच्चिदानंद भगवान "परमशिव" हैं|
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सारे कर्मों का अंतिम फल आत्म-साक्षात्कार करने की इच्छा का उत्पन्न होना है| आत्म-साक्षात्कार ही उस कन्या का विवाह है जिसका समय लगभग आ चुका है|
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ॐ नमो नारायण ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
११ जनवरी २०१८

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