Thursday, 11 January 2018

हम इस संसार में जो कार्य कर रहे हैं वह कैसे करें ?

हम इस संसार में जो कार्य कर रहे हैं वह कैसे करें ? 

इस बारे में भगवान श्रीकृष्ण का निर्देश है .....
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्" ||८.७||
आचार्य शंकर की व्याख्या ....
तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर यथाशास्त्रम् | युध्य च युद्धं च स्वधर्मं कुरु | मयि वासुदेवे अर्पिते मनोबुद्धी यस्य तव स त्वं मयि अर्पितमनोबुद्धिः सन् मामेव यथास्मृतम् एष्यसि आगमिष्यसि असंशयः न संशयः अत्र विद्यते || किञ्च --,
स्वामी रामसुखदास जी द्वारा किया गया भावार्थ .....
इसलिये तू सब समयमें मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर | मेरेमें मन और बुद्धि अर्पित करनेवाला तू निःसन्देह मेरेको ही प्राप्त होगा |
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जैसा मुझे समझ में आया है वह यह है कि स्वाभाविक रूप से स्वधर्मरूपी जो भी कार्य इस संसार में भगवान ने हमें सौंपा है, भगवान का निरंतर चिंतन करते हुए भगवान की प्रसन्नता के लिए हमें वह कार्य करते रहना चाहिए| यह भी एक युद्ध है| इस भावना की निरंतरता भी हमें भगवान को प्राप्त करा देगी|
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अब यह हर व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह अपने विवेक से इसे कैसे समझता है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
११ जनवरी २०१८

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