सफल ध्यान-साधना का रहस्य ....... ... शाम्भवी मुद्रा .....
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औम् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च !! ॐ नमः शिवाय !!
इस संक्षिप्त, सरल व अति लघु लेख को पढने वाले मंचस्थ सभी महान आत्माओं को मेरा नमन! आप सब मेरी निजात्मा हो और मेरे ही प्राण हो| यह लघु लेख मैं आपको नहीं बल्कि आप के माध्यम से स्वयं को लिख रहा हूँ
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ध्यान साधना में सफलता का रहस्य है ..... भ्रूमध्य में दृष्टी को स्थिर रखते हुए कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म के निरंतर दर्शन और नाद का श्रवण|
मेरुदंड सदा उन्नत रहे, ठुड्डी भूमि के समानांतर, और जीभ ऊपर की ओर पीछे मुड़ कर तालू से सटी हुई|
यह शांभवी मुद्रा है ....... भगवान शिव की मुद्रा जो सब मुद्राओं से श्रेष्ठ है|
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शिवनेत्र होकर ध्यान करते करते विद्युत् की आभा के समान प्रकट हुई सुनहरी ज्योति से भी परे एक नीले रंग के प्रकाशपुंज के दर्शन होते हैं जो एक नीले नक्षत्र सी प्रतीत होती है| यह विज्ञानमय कोष है| उसी के मध्य से, उससे भी परे एक विराट श्वेत ज्योति के दर्शन होते हैं जो आनंदमय कोष है| यह क्षीर-सागर है| उस पर ध्यान करते करते एक विराट पंचकोणीय श्वेत नक्षत्र के दर्शन होते हैं, जिस पर निरंतर ध्यान .... शाम्भवी मुद्रा की सिद्धि है| चेतना उससे भी परे जाकर शिवमय हो जाती है|
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यह वो लोक है जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता, और जिस की आभा से समस्त सृष्टि प्रकाशित है| उस अति शीतल दिव्य ज्योति के समक्ष सूर्य का प्रकाश भी अन्धकार है|उस का आनंद उसकी उपलब्धी में ही है, उसके वर्णन में नहीं| यह लेख तो प्रभुप्रेरणा और उनकी कृपा से एक परिचय मात्र है|
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औम् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च !! ॐ नमः शिवाय !!
इस संक्षिप्त, सरल व अति लघु लेख को पढने वाले मंचस्थ सभी महान आत्माओं को मेरा नमन! आप सब मेरी निजात्मा हो और मेरे ही प्राण हो| यह लघु लेख मैं आपको नहीं बल्कि आप के माध्यम से स्वयं को लिख रहा हूँ
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ध्यान साधना में सफलता का रहस्य है ..... भ्रूमध्य में दृष्टी को स्थिर रखते हुए कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म के निरंतर दर्शन और नाद का श्रवण|
मेरुदंड सदा उन्नत रहे, ठुड्डी भूमि के समानांतर, और जीभ ऊपर की ओर पीछे मुड़ कर तालू से सटी हुई|
यह शांभवी मुद्रा है ....... भगवान शिव की मुद्रा जो सब मुद्राओं से श्रेष्ठ है|
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शिवनेत्र होकर ध्यान करते करते विद्युत् की आभा के समान प्रकट हुई सुनहरी ज्योति से भी परे एक नीले रंग के प्रकाशपुंज के दर्शन होते हैं जो एक नीले नक्षत्र सी प्रतीत होती है| यह विज्ञानमय कोष है| उसी के मध्य से, उससे भी परे एक विराट श्वेत ज्योति के दर्शन होते हैं जो आनंदमय कोष है| यह क्षीर-सागर है| उस पर ध्यान करते करते एक विराट पंचकोणीय श्वेत नक्षत्र के दर्शन होते हैं, जिस पर निरंतर ध्यान .... शाम्भवी मुद्रा की सिद्धि है| चेतना उससे भी परे जाकर शिवमय हो जाती है|
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यह वो लोक है जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता, और जिस की आभा से समस्त सृष्टि प्रकाशित है| उस अति शीतल दिव्य ज्योति के समक्ष सूर्य का प्रकाश भी अन्धकार है|उस का आनंद उसकी उपलब्धी में ही है, उसके वर्णन में नहीं| यह लेख तो प्रभुप्रेरणा और उनकी कृपा से एक परिचय मात्र है|
आप सब के ह्रदय में परमात्मा के प्रति प्रेम जागृत हो, और उनकी कृपा आप सब पर हो|
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||
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