Monday 27 February 2017

मुझे बदलो, परिस्थितियों को नहीं .....

हे परात्पर गुरु रूप परमब्रह्म,

यदि कुछ बदलना ही है तो मुझे ही बदलो, न कि मेरी इन अति विकट परिस्थितियों को| मेरे अब तक के सारे प्रयास इन विकट परिस्थितियों को ही बदलने के थे, न कि स्वयं को| यह मेरे इस जीवन की सबसे बड़ी भूल थी|
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अब आप ही जब इस नौका के कर्णधार हो तब अच्छा-बुरा सब आपको समर्पित है| अब आप ही साध्य, साधक और साधना हो, आप ही उपास्य, उपासक और उपासना हो, और आप ही दृष्य, दृष्टा और दृष्टी हो|
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यदि मैं इन पीड़ा और यंत्रणाओं से नहीं निकलता तो हो सकता है मेरा आध्यात्मिक विकास ही नहीं होता| स्वयं के लिए जीना छोड़ कर ही संभवतः मैं आप में जी सकता हूँ|
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ॐ परमेष्ठी गुरवे नमः | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

3 comments:

  1. लगता है हम सब की मनोभूमि पर हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपू ही राज्य कर रहे हैं| जहाँ तक में समझता हूँ, हिरण्याक्ष का अर्थ है .... जिसकी दृष्टी पराये धन पर ही रहती है, जो कैसे भी पराये धन को हड़पना चाहता है| ऐसे ही जो निरंतर भोग-विलास और वासनाओं में लिप्त है, वह हिरण्यकशिपू है| लगता है पिछले हज़ार वर्षों से इन्हीं का राज्य है| भगवान इनसे रक्षा करे|
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    इन राक्षसों के स्थान पर परमात्मा का राज्य कैसे स्थापित हो ? इस पर हमें चिंतन करना चाहिए| ॐ ॐ ॐ ||

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  2. स्वयं के लिए जीना छोड़ कर ही संभवतः मैं आप में जी सकता हूँ|

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  3. मुझे बदलो, मेरी परिस्थितियों को नहीं |

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