Thursday, 2 February 2017

परमात्मा यदि है तो मेरे ह्रदय में ही है, अन्यथा कहीं भी नहीं है.,,,,,

परमात्मा यदि है तो मेरे ह्रदय में ही है, अन्यथा कहीं भी नहीं है.,,,,,
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यह शत-प्रतिशत सत्य है कि भगवान् यदि कहीं हैं तो वे मेरे ह्रदय में ही हैं, उससे बाहर कहीं भी नहीं हैं| आप पूछेंगे कि क्या भगवान पर तुम्हारा एकाधिकार है, तो मेरा उत्तर है .... निःसंदेह, एकाधिकार ही नहीं पूर्णाधिकार है| वे मेरे ह्रदय में बंद हैं और सात-सात तालों के भीतर बंदी हैं| बाहर निकलने का कोई अन्य मार्ग ही नहीं है| बाहर वे अब आ ही नहीं सकते| अपनी इच्छा से ही वे मुझ में हृदयस्थ होकर बाँके हो गए हैं| सातों ताले भी उन्होंने ही लगवा दिये हैं और बाहर आने की उनकी इच्छा भी नहीं है| वहीं से वे मजे से अपनी बांसुरी बजा रहे हैं जिसकी धुन पर यह सम्पूर्ण सृष्टि चैतन्य यानि जीवंत होकर नृत्य कर रही है| मैं भी उस मधुर धुन में विभोर होकर मस्त हूँ| अब और क्या चाहिए? सब कुछ तो मिल गया|
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यह सम्पूर्ण समष्टि ही मेरा ह्रदय है और कूटस्थ चैतन्य ही मेरा अस्तित्व जिसमें यह सम्पूर्ण समष्टि भी समाहित है| हे सच्चिदानंद, तुम्हारी जय हो| तुम्हीं शिव हो, तुम्हीं विष्णु हो, तुम्हीं जगन्माता हो, और तुम्हीं सर्वस्व हो| ॐ ॐ ॐ ||
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आप सब मेरी ही निजात्मा हो, आपका ह्रदय भी मेरा ही ह्रदय है| आप में और मुझ में कोई भेद नहीं है| सप्रेम सादर नमन| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.१० वि.स.२०७२, 03फरवरी2016

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