क्या अन्धकार और प्रकाश एक साथ रह सकते हैं ? .....
------------------------------------------------------
अन्धकार और प्रकाश एक साथ नहीं रह सकते| सूर्य और रात्री भी एक साथ नहीं रह सकते| यह जीवन दो शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों .... राम और काम ..... के मध्य की द्वन्द्वमय अंतर्यात्रा है| दोनों के प्रबल आकर्षण हैं| एक शक्ति हमें राम की ओर यानि परमात्मा की ओर खींच रही है, वहीँ दूसरी शक्ति हमें काम की ओर यानि सान्सारिक भोग-विलास की ओर खींच रही है| हम दोंनो को एक साथ नहीं पा सकते| हम को दोनों में से एक का ही चयन करना होगा| भूमध्य रेखा से हम उत्तरी ध्रुव की ओर जाएँ तो दक्षिणी ध्रुव उतनी ही दूर हो जाएगा, और दक्षिणी ध्रुव की ओर जाएँ तो उत्तरी ध्रुव उतनी ही दूर हो जाएगा| दोनों स्थानों पर साथ साथ नहीं जा सकते|
.
भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं ....
वह है हमारे ह्रदय का पूर्ण प्रेम| प्रभु भी प्रतीक्षा कर रहे है कि संभवतः कभी तो हम अपना प्रेम उन्हें दे ही देंगे | हम उन्हें अपने प्रेम के अतिरिक्त अन्य दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उन्हीं का है| विषयों के प्रति प्रेम ही हमें परमात्मा से दूर कर रहा है| प्रेम के उच्चतम आदर्श हैं .....श्रीराधा जी और श्रीहनुमान जी| श्रीराधा जी में जो प्रेम भगवान श्रीकृष्ण के लिए था, और श्रीहनुमान जी में जो प्रेम भगवान श्रीराम के प्रति था, उस प्रेम से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है| वैसे प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ कामना हमारी होनी भी नहीं चाहिए|
.
प्रार्थना आत्मा की तड़प है प्रभु को पाने की| प्रभु ने हमें भिखारी नहीं बनाया है| हम तो उसके अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी भगवान का है वह स्वतः ही हमारा भी है, उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| हमारे घर कोई भिखारी आये तो हम उसे भिखारी का ही भाग देंगे, पर पुत्र द्वारा माँगने पर अपना सब कुछ दे देते हैं| अतः भगवान का पुत्र ही बन कर रहना श्रेष्ठ है, न कि भीख माँगना|
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
------------------------------------------------------
अन्धकार और प्रकाश एक साथ नहीं रह सकते| सूर्य और रात्री भी एक साथ नहीं रह सकते| यह जीवन दो शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों .... राम और काम ..... के मध्य की द्वन्द्वमय अंतर्यात्रा है| दोनों के प्रबल आकर्षण हैं| एक शक्ति हमें राम की ओर यानि परमात्मा की ओर खींच रही है, वहीँ दूसरी शक्ति हमें काम की ओर यानि सान्सारिक भोग-विलास की ओर खींच रही है| हम दोंनो को एक साथ नहीं पा सकते| हम को दोनों में से एक का ही चयन करना होगा| भूमध्य रेखा से हम उत्तरी ध्रुव की ओर जाएँ तो दक्षिणी ध्रुव उतनी ही दूर हो जाएगा, और दक्षिणी ध्रुव की ओर जाएँ तो उत्तरी ध्रुव उतनी ही दूर हो जाएगा| दोनों स्थानों पर साथ साथ नहीं जा सकते|
.
भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं ....
वह है हमारे ह्रदय का पूर्ण प्रेम| प्रभु भी प्रतीक्षा कर रहे है कि संभवतः कभी तो हम अपना प्रेम उन्हें दे ही देंगे | हम उन्हें अपने प्रेम के अतिरिक्त अन्य दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उन्हीं का है| विषयों के प्रति प्रेम ही हमें परमात्मा से दूर कर रहा है| प्रेम के उच्चतम आदर्श हैं .....श्रीराधा जी और श्रीहनुमान जी| श्रीराधा जी में जो प्रेम भगवान श्रीकृष्ण के लिए था, और श्रीहनुमान जी में जो प्रेम भगवान श्रीराम के प्रति था, उस प्रेम से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है| वैसे प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ कामना हमारी होनी भी नहीं चाहिए|
.
प्रार्थना आत्मा की तड़प है प्रभु को पाने की| प्रभु ने हमें भिखारी नहीं बनाया है| हम तो उसके अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी भगवान का है वह स्वतः ही हमारा भी है, उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| हमारे घर कोई भिखारी आये तो हम उसे भिखारी का ही भाग देंगे, पर पुत्र द्वारा माँगने पर अपना सब कुछ दे देते हैं| अतः भगवान का पुत्र ही बन कर रहना श्रेष्ठ है, न कि भीख माँगना|
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
No comments:
Post a Comment