Saturday 21 January 2017

मेरा धर्म क्या है ? .....

मेरा धर्म क्या है ? .....
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यह एक बड़ा ही गूढ़ प्रश्न है जिसने मुझे बहुत आंदोलित और उद्वेलित किया है| अब इस ढलती आयु में इस प्रश्न के उत्तर की कुछ कुछ झलक मिलती है| इस विषय पर मेरे विचार बड़े स्पष्ट हो गए हैं जिनसे मेरा अधिकाँश लोगों से मतभेद ही होगा|
विषय को लघु रखने के लिए मैं कम से कम शब्दों का प्रयोग करूंगा| विस्तृत व्याख्या में न जाकर सार की ही बात करूंगा|
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निज स्वभाव और धर्म इनमें बहुत अंतर है जबकि ये एक से प्रतीत होते हैं|
कुछ लोगों की भावनाओं को मेरी बातें आहत भी कर सकती हैं| पर मुझे जो भी कहना है उसे स्पष्ट कहूंगा|
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(१) मेरा स्वभाव ....... मेरे लिए अनिर्वचनीय, अनंत, सर्वव्यापी परम प्रेम ही मेरा स्वभाव है|
इसको वो ही समझ सकता है जिसने इसकी एक झलक की अनुभूति की हो|
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(२) मेरा धर्म .........
साधनाकाल में मेरा धर्म ....."प्राणायाम" ..... है| जिन साधना पद्धतियों में मैं दीक्षित हूँ वे सुक्ष्मदेह में मेरुदंडस्थ परा सुषुम्ना नाडी में, और सहस्त्रार में उत्तरा सुषुम्ना और उससे भी परे सूक्ष्म प्राणायाम पर आधारित हैं| मुझे सूक्ष्म जगत से मार्गदर्शन मिलता है अतः कोई शंका या संदेह नहीं है| इसलिए साधनाकाल में मेरा धर्म प्राणायाम ही है|
साधना की परावस्था में मेरा धर्म सच्चिदानंद भगवान को समर्पण करने का निरंतर प्रयास है| इससे आगे मैं कुछ नहीं जानता| यही मेरा धर्म है|
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(३) मेरी जाति कुल व गौत्र .....
जैसे विवाह के पश्चात नव विवाहिता की जाति, कुल व गौत्र अपने पति का ही हो जाता है, वैसे ही मेरी जाति भी वह ही है जो परमात्मा की है, मेरा कुल व गौत्र भी वही है जो परमात्मा का है| यह देह तो एक दिन नष्ट हो कर पंचभूतों में मिल जायेगी पर परमात्मा के साथ मेरा सम्बन्ध शाश्वत है|
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ॐ नमः शिवाय ! ॐ शिव शिव शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
पौष शु. १२ वि.सं.२०७२| 21जनवरी2016.

1 comment:

  1. प्रथम, अंतिम और एकमात्र संकल्प और प्रार्थना जो अब शेष बची है .....
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    "मैं" नहीं अब सिर्फ "तुम" हो और "तुम्ही" रहोगे| अब तक के सभी जन्म-जन्मान्तरों के सारे पाप-पुण्य, सारे अभाव और सारे छिद्र व सारी अच्छाइयाँ-बुराइयाँ सब तुम्हें समर्पित है| अब और कुछ भी नहीं चाहिए| अपनी उपस्थिति से हर कमी को दूर कर दो| कोई कामना या पृथकता का बोध अब और ना उत्पन्न हो| कोई प्रार्थना भी ना रहे| सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा प्रेम रहे|
    I am one with Thee. I am a perfect child of Thee. Reveal Thyself unto me.
    ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||

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