Wednesday, 14 December 2016

निराश्रयं माम् जगदीश रक्षः .....

निराश्रयं माम् जगदीश रक्षः .....
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श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे |
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति ||
‘हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन्‌ ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो’ ||
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हे प्रभु, तुम्हारी परम कृपा से अब कभी भी कैसी भी कोई कामना उत्पन्न न हो|
मेरा तुम्हारे से पृथक कोई अस्तित्व ना रहे| बस तुम रहो और तुम्हारी ही तुम्हारी इच्छा रहे|
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जब तुम साथ में हो तो मुझे किसी अन्य की कोई आवश्यकता नहीं है ..... न कुछ पाने की और ना कुछ जानने की| सब कुछ तुम्हारा है| मेरा अस्तित्व भी तुम्हारा है| तुम और मैं एक हैं|
मैं तुम्हारी पूर्णता बनूँ, मैं तुन्हारे से पृथक नहीं रह सकता| मेरा समर्पण स्वीकार करो|
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कौन तो उपासक है और कौन उपास्य है? उपास्य, उपासक और उपासना सब कुछ तो तुम्ही हो| साध्य, साधक और साधना सब एक ही है| बिन्दु भी तुम हो, प्रवाह भी तुम हो और अनंतता भी तुम ही हो| जो कुछ भी है और नहीं भी है, वह सब कुछ तो हे परम प्रिय तुम्हीं हो|
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तुम्हारे परम प्रेम पर मेरा पूर्ण अधिकार है| मैं तुम्हारा परम प्रेम हूँ| जो तुम हो वह ही मैं हूँ और जो मैं हूँ वह ही तुम हो| दोनों में कोई भेद नहीं होना चाहिए|
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पर फिर भी एक धुएँ की लकीर सा पतला एक आवरण है जो दूर नहीं हो रहा है और विक्षेप भी आते रहते हैं जो बड़े दुःखदायक हैं|
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मेरा और कोई आश्रय नहीं है, अब और किसे पुकारूं?
हे जगदीश, मुझ निराश्रय की रक्षा करो, त्राहिमाम् त्रहिमाम् ..............
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अग्रे कुरूनाम् अथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृत वस्त्रकेशा |
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथ गोविंद दामोदर माधवेति ||
(जिस समय) कौरव और पाण्डवोंके सामने भरी सभामें दुःशासनने द्रौपदीके वस्त्र और बालोंको पकडकर खींचा, उस समय जिसका कोई दूसरा नाथ नहीं ऐसी द्रौपदीने रोकर पुकारा - ‘ हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !’ ||
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे |
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति ||
‘हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन्‌ ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो’ ||
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हरे मुरारे मधुकैटभारे, गोबिंद गोपाल मुकुंद माधव |
यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु, निराश्रयं माम् जगदीश रक्षः ||
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ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

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  2. मेरा और कोई आश्रय नहीं है, अब और किसे पुकारूं? हे जगदीश, मुझ निराश्रय की इस संसार की नकारात्मकता से रक्षा करो। त्राहिमाम् त्रहिमाम् ---
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    "अग्रे कुरूनाम् अथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृत वस्त्रकेशा।
    कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥
    श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।
    त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥"
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    (जिस समय) कौरव और पाण्डवोंके सामने भरी सभामें दुःशासनने द्रौपदीके वस्त्र और बालोंको पकडकर खींचा, उस समय जिसका कोई दूसरा नाथ नहीं ऐसी द्रौपदीने रोकर पुकारा - ‘ हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !’॥
    ‘हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन्‌ ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो’॥
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    हरे मुरारे मधुकैटभारे, गोबिंद गोपाल मुकुंद माधव।
    यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु, निराश्रयं माम् जगदीश रक्षः॥

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