Wednesday 14 December 2016

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....
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मनुष्य की शाश्वत जियासा है परमात्मा को जानने और पाने की| यह जिज्ञासा ही अभीप्सा में बदल जाती है|
मनुष्य की हर उपलब्धी प्रतीक्षा कर सकती है, पर साक्षात परमात्मा को उपलब्ध होने की खोज और प्रतीक्षा नहीं कर सकती|
पहले परमात्मा को प्राप्त करो फिर दुनिया के बाकी काम|
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परमात्मा कि प्राप्ति जिसे हम आत्मसाक्षात्कार भी कह सकते हैं सबसे बड़ी सेवा है जिसे कोई व्यक्ति समाज, राष्ट्र, विश्व, मानवता व समष्टि के प्रति कर सकता है|
ऐसे व्यक्ति का अस्तित्व ही संसार के लिए वरदान है|
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परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम और सम्पूर्ण समर्पण मनुष्य जीवन की सर्वोच्च उपलब्धी है|
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युवावस्था में ही जब परमात्मा की एक झलक मिल जाए तब उसी समय से उसकी खोज में लग जाना चाहिए| जीवन बहुत छोटा है और मायावी आवरण और विक्षेप की शक्तियाँ अति प्रबल हैं|
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इस जन्म से पूर्व परमात्मा ही हमारे साथ थे और मृत्यु के पश्चात भी वे ही हमारे साथ रहेंगे| इस जन्म में भी हमें माता-पिता, बन्धु, मित्र, सगे-सम्बन्धी आदि से जो भी प्रेम मिलता है वह परमात्मा का ही प्रेम है जो औरों के माध्यम से व्यक्त हो रहा है|
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परमात्मा से हम इतना प्रेम करें कि हमारा स्वभाव ही प्रेममय हो जाए| यही जीवन का सार है| तब हम परमात्मा के एक उपकरण मात्र बन जाएंगे और स्वयं भगवान ही हमारे माध्यम से हर कार्य करेंगे, जो कि सर्वश्रेष्ठ होगा|
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Sermon on the Mount .....
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He said ..... "But seek ye first the kingdom of God, and his righteousness; and all these things shall be added unto you."
Matthew 6:33 KJV.
इसका अर्थ है कि पहिले परमात्मा के राज्य को ढूंढो, फिर अन्य सब कुछ तुम्हें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

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