Wednesday, 14 December 2016

मेरी दृष्टी में निष्काम कर्मयोग ....

मेरी दृष्टी में निष्काम कर्मयोग ....
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कर्मयोग >>>>>
परमेश्वरार्पणबुद्धि से श्रुति-स्मृतियों में कर्तव्य बताए गए नित्य-नैमित्तिक कर्मों का स्वयं के माध्यम से संपादित होना ही कर्मयोग है|
यहाँ कर्ता हम नहीं अपितु स्वयं परमात्मा ही हो| हम तो परमात्मा के उपकरण मात्र ही रहें|
ॐ ॐ ॐ ||
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 परमात्मा का साक्षात्कार ही समष्टि का कल्याण है| परमात्मा के साक्षात्कार के लिए जो भी उपासना, भजन, साधन आदि किये जाएँ वे ही निष्काम कर्म योग हैं| भजन-कीर्तन, अष्टांग योग, वेदांत-विचार और निरंतर ब्रह्म-चिंतन आदि ये सब निष्काम कर्म योग हैं| यह ही सबसे बड़ी सेवा है|
वनों के एकांत में जो त्यागी-तपस्वी भोगनिवृत साधू-संत भगवान का ध्यान करते हैं, वे समष्टि का सबसे बड़ा कल्याण करते हैं| वे वास्तविक निष्काम कर्मयोगी हैं| वे ही सच्चे महात्मा हैं| हमें ऐसे निष्काम कर्मयोगी महात्माओं की सदा आवश्यकता पड़ेगी|
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कर्ताभाव से मुक्त होकर परमात्मा को समर्पित हर कार्य, अहैतुकी भक्ति और परमात्मा पर ध्यान ही ..... निष्काम कर्मयोग है .....
जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाकर, अहंभाव यानि कर्ताभाव से मुक्त होकर परमात्मा को समर्पित किया हुआ कार्य ही कर्मयोग हो सकता है| यही मेरी समझ है| परमात्मा के मार्ग की गली इतनी संकड़ी है कि उसमें दो तो क्या अकेला व्यक्ति भी चाहे तो बिना हरि कृपा के प्रवेश नहीं पा सकता| प्रभु भी मार्ग तभी प्रदान करते हैं जब उनसे हमें प्रेम हो जाता है| उसमें प्रवेश पाने के पश्चात जीवात्मा परमात्मा ही हो जाता है|
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प्रकृति में कुछ भी निःशुल्क नहीं है| हर चीज की कीमत चुकानी पडती है| प्रभु के मार्ग पर चलने की कीमत प्रेम है| यह प्रेम ही चलने की सामर्थ्य देता है| यह प्रेम ही है जो उनके ह्रदय का द्वार खोलता है| पर पहिले हमें स्वयं के ह्रदय के द्वार खोलने पड़ते हैं| फिर भी प्रवेश अकेले को ही मिलता है| मन बुद्धि चित्त और अहंकार सब उसे ही समर्पित करने पड़ते हैं अन्यथा ह्रदय के द्वार नहीं खुलते| यह मूल्य तो चुकाना ही पड़ता है|
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जब प्रभु से परम प्रेम होता है तभी कर्ताभाव तिरोहित होता है| उस स्थिति में संपादित हुआ कर्म ही निष्काम कर्मयोग है|
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