Wednesday 19 October 2016

परमात्मा सब सिद्धांतों, मत-मतान्तरों, परम्पराओं और सम्प्रदायों से परे है ...

परमात्मा सब सिद्धांतों, मत-मतान्तरों, परम्पराओं और सम्प्रदायों से परे है ...
---------------------------------------------------------------------------------
जो आदि, अनंत और अगम है क्या उसे कुछ सिद्धांतों, मत-मतान्तरों, परम्पराओं और सम्प्रदायों के बंधन में बाँध सकते हैं?
हम परमात्मा का साक्षात्कार चाहते हैं, उससे कम कुछ भी नहीं|
.
आस्तिक-नास्तिक मतों के विवादों; शैव, वैष्णव, शाक्त और गाणपत्य आदि सम्प्रदायों के मतभेदों; साकार-निराकार के विवादों और अनेक सारे मत-मतान्तरों की उलझनों से हमें अपनी चेतना को ऊपर उठाना है|
.
भगवान साकार भी है और निराकार भी| सारे आकार उसी के हैं| सारे मत और सिद्धांत उसी में समाहित हैं| वह सब से ऊपर है| जहाँ इनका सहारा चाहिए, इनका सहारा लो, पर इनमें बंधो मत|.
महत्व सिर्फ भक्ति यानि परम प्रेम का है| जिससे भी आपकी भक्ति बढ़े वह सही है, और जिससे आपकी भक्ति घटे वह गलत है|
.
हम भगवान के हैं और भगवान हमारे हैं |
ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment