Monday 19 September 2016

तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार | राग न द्वेष न दोष दुख, दास भए भव पार || ......

तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार |
राग न द्वेष न दोष दुख, दास भए भव पार || ......
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एक बात जो मुझे बहुत अच्छी तरह समझ में आती है वह है कि परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हमारी मानसिक कामनाएँ यानि इच्छाएँ ही हमारे सब बंधनों का कारण है | इनसे मुक्त होने का उपाय भी पता है पर उसके लिए कठोर साधना करनी पड़ती है जो इतनी सरल नहीं है | मात्र संकल्प से कुछ नहीं होता | कोई भी साधना आसानी से नहीं होती, उसके लिए तितिक्षापूर्वक बहुत अधिक कष्ट सहन करना पड़ता है |
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हम चाहें कितने भी संकल्प कर लें पर ये इच्छाएँ हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी | इनसे मुक्त होने के लिए सत्संग, भक्ति, निरंतर नाम-जप, शरणागति, ध्यान और समर्पण साधना करनी ही पड़ती है, जो बड़ी कष्टप्रद होती हैं | बहुत लम्बे अभ्यासके पश्चात जाकर परमात्मा की कृपा से हम कामनाओं से मुक्त हो सकते हैं|
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कामनाओं से मुक्त होने के लिए कहना बड़ा सरल है पर करना बहुत कठिन |
मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि जहाँ तक काम करती है, सबसे सरल मार्ग है...... परमात्मा की उपस्थिति का निरंतर आभास और पूर्ण प्रेम से निरंतर मानसिक नाम-जप |
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मिलें न रघुपति बिन अनुरागा, कियें जोग जप ताप विरागा |
परमात्मा सिर्फ प्रेम से ही मिलते हैं | बिना प्रेम यानि बिना भक्ति के कोई भी साधन सफल नहीं होता |
हम भगवान के हैं और भगवान हमारे हैं ..... यह भाव निरंतर रखने का अभ्यास करें | तब जाकर कामनाओं से पीछा छूटेगा |
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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