Tuesday 20 September 2016

सभ्यताओं का उदयास्त और पारस्परिक संघर्ष .....

सभ्यताओं का उदयास्त और पारस्परिक संघर्ष .....
---------------------------------------------------
वर्षों से मेरी यह सोच थी कि विश्व की आसुरी सभ्यताओं में संघर्ष होगा और उनमें हुए पारस्परिक युद्धों से विश्व का विनाश हो जाएगा | पर अब मनुष्यता इतनी बुद्धिमान हो चुकी है कि वह विनाश को सामने देखकर समझौते कर लेती है और विनाश को टाल देती है | पिछले कुछ वर्षों में कई बार महाशक्तियाँ आमने सामने हुईं और लगा कि उनमें आपस में युद्ध होगा, पर युद्ध की चरम संभावना होते ही उन्होंने आपस में समझौते कर लिए और संभावित युद्ध को टाल दिया| द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका इतनी भयावह थी कि अब कोई भी युद्ध करने से डरता है|
.
अब तक के सारे युद्ध दो ही कारणों से लड़े गये हैं, तीसरा कोई कारण नहीं था| पहला कारण था मनुष्य का लोभ, और दूसरा था मनुष्य की घृणा| दोनों विश्व युद्ध भी घृणा और लोभवश लड़े गये| भारत पर जितने भी विदेशी आक्रमण हुए उन सब के पीछे भी यही कारण थे|
.
पर वर्त्तमान में तीन ऐसी व्यवस्थाएँ या सभ्यताएँ हैं जिनमें आपसी संघर्ष होने की पूरी संभावनाएँ हैं ...... एक तो इस्लामिक ज़ेहाद है जो सम्पूर्ण विश्व को अपने ही रंग में रंग देना चाहता है| दूसरा अमेरिका और पश्चिमी जगत है जो अन्य सब का शोषण करना चाहता है| तीसरा चीन है जो अपना अधिक से अधिक विस्तार चाहता है|
.
विचारधारा के रूप में तो साम्यवाद पराभूत हो चुका है पर चीन में साम्यवादी दल के नाम पर कुछेक लोगों का एक गिरोह है जो आतंक के जोर पर राज्य कर रहा है| यही हाल उत्तरी कोरिया का है जहाँ एक परिवार का निरंकुश तानाशाह राज कर रहा है| साम्यवाद जीवित है तो सिर्फ भारत में ही है| साम्यवाद के चरम को मैंने बहुत समीप से पूर्व सोवियत संघ में रूस, युक्रेन, व लाटविया, और चीन, रोमानिया व उत्तरी कोरिया में देखा है| उनका पतन भी बहुत समीप से देखा है|
.
माओ ने चीन में चाहे करोड़ों लोगों की हत्याएँ की हों पर एक काम उसने बहुत अच्छा किया और वह था साम्यवाद को चीन के राष्ट्रवाद के पक्ष में खडा करना| पर भारत में इसका उलटा हुआ| भारत में साम्यवाद को लाने का श्रेय एम.एन.रॉय नाम के एक विचारक को है जिसने इसे हिन्दू राष्ट्रवाद के विरुद्ध खडा किया| भारत में आज भी साम्यवादी/मार्क्सवादी लोग हिन्दू राष्ट्रवाद के कट्टर विरुद्ध हैं|
.
पश्चिमी जगत ने ईसाइयत का प्रयोग एक शस्त्र के रूप में अपने वर्चस्व के लिए ही किया है| सबसे पहिले रोम के सम्राट कोंस्तेंताइन दि ग्रेट ने ईसाइयत का प्रयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया जबकि वह स्वयं ईसाई नहीं था और सूर्य उपासक पेगन था| अपनी मृत्यु शैया पर जब वह लाचार पडा था तब पादरियों ने उसका बापतिस्मा कर दिया| वर्तमान ईसाई धर्म उसी का दिया हुआ रूप है| भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में जहाँ भी पश्चिमी देशों ने राज्य किया है वहाँ पहले पादरियों को भेजा, फिर समुद्री डाकुओं को और फिर व्यापारियों के साथ अपनी सेना को|
.
इस्लाम भी अरब राष्ट्रवाद का विस्तार है| इसके अनुयायी दिन में पाँच बार अरब की ओर मुंह कर के अरबी भाषा में प्रार्थना करते हैं, अरब की ओर सिर कर के सोते हैं, मृतक का सिर भी अरब की और करते हैं, अरबी ढंग से वस्त्र पहिनते हैं और जीवन में एक बार अरब की यात्रा अवश्य करते हैं| यह विशुद्ध अरबी राष्ट्रवाद है| इससे अरब का वर्चस्व बढ़ता है और अर्थव्यवस्था सुधरती है|
.
सीरिया, ईराक आदि की घटनाओं ने और पकिस्तान के व्यवहार ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस समय विश्व को सबसे अधिक खतरा ज़ेहादी विचारधारा से है जो दूसरों से घृणा करना सिखाती है| इस विचारधारा को यहूदी राष्ट्र इजराइल ने पर्याप्त सीमा तक रोक रखा है|
.
सबसे विचित्र बात तो यह है की चीन जहाँ इस्लाम पर पूर्ण प्रतिबन्ध है, उसके प्रायः सभी मुस्लिम देशों से बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं| इसका एकमात्र कारण चीन का भारत और अमेरिका से विरोध है|
.
चीन ने भारत को चारों और से घेर रखा था| बंगाल की खाड़ी में म्यामार के कोको द्वीप पर से, और अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चीन की नौसेना भारत की हर गतिविधि पर निगाह रखती है| पर अब प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी कि कूटनीति ने चीन को ही अपने अन्य पड़ोसियों से अलग थलग कर दिया है|
म्यामार के कोको द्वीप से भारत का East Island नाम का द्वीप बिलकुल समीप पड़ता है जहाँ का प्रकाश स्तंभ (Light House) भारत के सबसे बड़े प्रकाश स्तंभों में से एक है| वह क्षेत्र इतना अधिक संवेदनशील है कि East island पर वहाँ सेवा में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों, पुलिस और नौसेना के अतिरिक्त अन्य किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है| नौसेना के बहुत सारे युद्धपोत वहाँ हर समय रहते हैं और कोको द्वीप से होने वाली चीन की हर गतिविधि पर निगाह रखते हैं| वहां के आसपास के द्वीपों पर भी जाने की किसी को अनुमति नहीं है|
अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह से चीन की हर गतिविधि पर निगाह रखने केलिए भारत, ईरान के चाबहार बंदरगाह का प्रयोग कर रहा है|
यह भी भारत और चीन की सभ्यताओं का संघर्ष ही है|
.
आगामी समय भारत की उन्नति का होगा| जब तक हम आध्यात्मिक उन्नति के प्रति पुरी तरह जागृत नहीं होंगे तब तक ये आसुरी शक्तियाँ भारत दमन का कुचक्र चलाती रहेंगी|
.
विश्व में अनेक व्यवस्थाएँ/सभ्यताएँ आईं और चली गईं| और भी अनेक प्रकार की सभ्यताएँ/व्यवस्थाएँ आएँगी जिनका उदयास्त और पारस्परिक संघर्ष चलता रहेगा| यह कभी देवासुर तो कभी असुरासुर संग्राम है जो सदा चलता ही रहता है| उपरोक्त वर्णित सभी सभ्यताएँ भी एक दिन नष्ट हो जायेंगी और उनका स्थान अन्य सभ्यताएँ ले लेंगी| कुछ भी शाश्वत नहीं है|
.
यह एक महाभारत का युद्ध है जो प्रत्येक मनुष्य के अन्तर में चल रहा है और सदा चलता ही रहेगा| वर्तमान सभ्यता का विनाश भी निश्चित ही होगा पर कब होगा, यह सृष्टिकर्ता ही जानता है|
.
इन सब के रहस्य को समझना मानव बुद्धि के लिए असम्भव है| समझने के प्रयास में मनुष्य पागल हो सकता है| यहाँ प्रश्न तो यह उठता है कि ..... इस मनुष्य जीवन का उद्देश्य और सार्थकता क्या है, और वह सर्वश्रेष्ठ क्या है जो हम कर सकते हैं???
.
यह त्रिगुणात्मक विषम सृष्टि है| इस विषमता से पार जाने पर ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है| तभी वह इस महादु:ख से बच सकता है| ऐसा महापुरुषों का कथन है|
>>> पर इस विषमता से पार कैसे जाया जाये? यही विचारणीय बिंदु है जिस पर सभी को विचार करना चाहिए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
21 September 2013

No comments:

Post a Comment