Friday 12 August 2016

वास्तविक स्नान ....

वास्तविक स्नान ....
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सामान्यतः हम अपनी देह को जल से स्वच्छ रखने को ही स्नान कहते हैं|
पर अपनी देह की स्वच्छता के साथ साथ अपने अंतःकरण यानि मन और बुद्धि को भी निर्मल रखना .... वास्तविक स्नान है| हिंसा, क्रोध और वासनात्मक विचार मन के मैल हैं|
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कभी भी अपने आप को असहाय ना समझें| हम परिस्थितियों के शिकार नहीं बल्कि उनके जन्मदाता हैं| जिन भी परिस्थितियों में हम हैं उनको हमने ही अपने भूतकाल में अपने विचारों और भावों से जन्म दिया है|
हमारा सबसे बड़ा भ्रम और हमारी सभी पीड़ाओं का कारण ...... परमात्मा से पृथकता की भावना है| यह भी एक विकार है, जिससे हमें मुक्त होना है|
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अपने अंतःकरण को हम परमात्मा के ध्यान द्वारा ही स्वच्छ रख सकते हैं| अतः परमात्मा की निरंतर उपासना ही वास्तविक स्नान है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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