Tuesday, 4 November 2025

आध्यात्मिक साधना द्वारा हमारे ऊपर परमात्मा की पूर्ण कृपा कैसे हो ? --

 आध्यात्मिक साधना द्वारा हमारे ऊपर परमात्मा की पूर्ण कृपा कैसे हो ? ---

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भक्ति, योग व तंत्र की साधनाओं में मूलाधार चक्र का जागृत होना बड़ा आवश्यक है। उसके बिना कोई प्रगति नहीं होती। मूलाधार चक्र के पूरी तरह जागृत हुए बिना ध्यान-साधना में तो बिल्कुल भी सफलता नहीं मिलती। मूलाधार चक्र के अधिपति श्रीगणेश जी हैं। उन्हीं की अनुकंपा से सारे विघ्न दूर होते हैं। इस विषय पर मार्गदर्शन अपनी अपनी गुरु-परंपरा से ही प्राप्त हो सकता है।
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हम स्वभावतः उसी मत या संप्रदाय की ओर आकृष्ट होते हैं, जिस के संस्कार हमारे में पूर्वजन्मों से होते हैं। लेकिन सत्य तो यह है कि वही मत, सिद्धान्त, और मान्यता सर्वश्रेष्ठ है, जो हमें शीघ्रातिशीघ्र ईश्वर की प्राप्ति यानि आत्म-साक्षात्कार करा दे। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है। जो हमारे में परमात्मा के प्रति परमप्रेम जागृत कर हमें सच्चिदानंदमय बना दे, वही मत सर्वश्रेष्ठ है। जो हमें ईश्वर से दूर ले जाये वह सिद्धान्त गलत है।
. अपनी आध्यात्मिक साधना का आरंभ मूलाधारचक्र में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से गणेश जी के ध्यान से आरंभ करें --
"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।"
उपरोक्त मंत्र का मूलाधारचक्र पर दिन में दो बार सायं और प्रातः १०८ बार जप इतना अधिक लाभदायक होगा, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
यदि श्रद्धा और विश्वास नहीं है, तो कोई साधना मत करें। बिना श्रद्धा और विश्वास से की गई कोई साधना सफल नहीं होती। साधनाकाल में अपनी चेतना को कूटस्थ में रखें।
पञ्चदेवोपासना का मैं पूर्ण समर्थक हूँ। हमारा मेरुदंड -- भगवान की वेदी है। वही हमारा मंदिर है। मेरुदंड के चक्रों में पंचदेवोपासना करें। फिर आज्ञाचक्र पर ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें।
यदि आप द्विज हैं, यानि आपका उपनयन संस्कार हो चुका है तो सायं प्रातः संध्या करें, और सविता देव की भर्गः ज्योति का कूटस्थ में खूब ध्यान करें। निरंतर कूटस्थ-चैतन्य / ब्राह्मी-चेतना / कैवल्य में स्थित रहने का प्रयास करें। श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ अच्छी तरह समझते हुए कम से कम पाँच मंत्रों का नित्य स्वाध्याय करें। आप पर परमात्मा की पूर्ण कृपा होगी।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९ अक्तूबर २०२५

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