हृदय में परमात्मा से प्रेम के बिना हम सब एक नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं ---
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मैं अपने विचारों पर दृढ़ हूँ। जो मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं, वे मेरे मित्र-संकुल का त्याग कर सकते हैं। यह मेरे ऊपर उनका एक बहुत बड़ा उपकार होगा। मैं सिर्फ उन्हीं का साथ चाहता हूँ, जिनके हृदय में कूट कूट कर परमात्मा के प्रति अहैतुकी परमप्रेम भरा पड़ा हो, जो ईश्वर को उपलब्ध होना चाहते हों, और जिनके हृदय में भारतवर्ष व सनातन धर्म के प्रति पूर्ण प्रेम हो।
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मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है। आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं। जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं, तब व्यक्तिगत मोक्ष और कल्याण की कामना धर्म नहीं हो सकती।
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सब ओर से निराश होकर बड़ी कठिनाई से हम परमात्मा के सम्मुख आ पाये हैं। इसे शरणागति मानकर उन्हें हमारा समर्पण स्वीकार करना ही होगा। कुछ करने की ऊर्जा भी नहीं रही है। अब तो स्वयं परमात्मा को हमारे हृदय-मंदिर में पधार कर अपना स्थायी डेरा डालना होगा। सारी प्रार्थनाएँ हम भूल गये हैं। अब कोई साधना नहीं होती। हम तो उनके उपकरण मात्र हैं, जिसे वे ही संभाल सकते हैं। हमारे वश में कुछ भी नहीं है। हृदय में परमात्मा से प्रेम के बिना हम सब एक नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ नवंबर २०२५
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