Thursday, 20 November 2025

"परमात्मा से पृथकता का भ्रम" हमारी एकमात्र समस्या है ---

 "परमात्मा से पृथकता का भ्रम" हमारी एकमात्र समस्या है। अपने लिए हम स्वयं ही समस्या बन गये हैं। भगवान की कृपा अवश्य ही हमें मुक्त करेगी।

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(भजन) "मेरे श्यामल कृष्ण आओ, मेरे श्यामल कृष्ण आओ,
मेरे श्यामल कृष्ण आओ,
हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण,
श्यामल कृष्ण आओ, राधे कृष्ण आओ।
हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण,
राधे-कृष्ण आओ, मेरे श्यामल कृष्ण आओ॥"
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परमात्मा को पाने की एक प्रबल अभीप्सा, भक्ति, स्वस्थ शरीर और मन, व लगन और ब्रह्मचर्य की आवश्यकता है। इसके लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन, सत्संग, कुसंग का त्याग, और नित्य नियमित अभ्यास चाहिए। इस मार्ग पर हठयोग व तंत्र भी साधना होगा। सबसे बड़ी आवश्यकता तो एक प्रबल अभीप्सा की है। अभीप्सा का अर्थ है -- भगवान को पाने की एक तड़प और अतृप्त प्यास। उसके बिना काम नहीं बनेगा। यह अभीप्सा आपमें है तो इस मार्ग पर आइये, अन्यथा नहीं। भगवान हमारी रक्षा करें।
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परमात्मा का मार्ग है 'परमप्रेम' यानि 'भक्ति'। जो विचार हमें किसी से भी नफरत यानि घृणा या द्वेष करना सिखाता है वह अधर्म यानि शैतान का राक्षसी मार्ग पाप है। न तो किसी से अत्यधिक राग यानि लगाव हो, न द्वेष, और न अहंकार। राग, द्वेष और अहंकार से मुक्ति 'वीतरागता' है जो हमें 'स्थितप्रज्ञ' बनाती है। अहंकार, लोभ और घृणा -- हिंसा की जननी हैं, इनसे मुक्ति अहिंसा है जो परमधर्म कहलाती है।
महादेव महादेव महादेव !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० नवंबर २०२५

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