(प्रश्न) : भारत में समाज को देखकर मैं निराश क्यों हूँ?
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(उत्तर) : भारत का लगभग सारा संभ्रांत वर्ग यानि Elite class अपने बच्चों को अग्रेज़ बनाना चाहता है, न कि भारतीय। कोई सुनता ही नहीं है। हम जब बच्चे थे तब हमारे माँ-बाप हमें उठते ही इन मंत्रों को बोलना सिखाते थे --
"कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
"समुद्रवसने देवीपर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्वमे॥"
"ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु॥"
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अब इन्हें पिछड़ेपन की निशानी माना जाता है। अब प्रणाम तो कोई नहीं बोलता। सब Good morning बोलते हैं। रात्री को सोने से पूर्व भी भगवान विष्णु का मंत्र बोलकर और विष्णु का ध्यान कर के सोते थे। अब तो बच्चे लोग मोबाइल पर सिनेमा देखते हुए या वीडियो गेम देखते हुए सोते हैं।
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हमें कालातीत (outdated) समझा जाता है। इस पतन के साक्षी हैं। यही चलता रहा तो भारत हिंदुस्तान नहीं, इंग्लिस्तान बन जायेगा। आजकल के बच्चे जब अङ्ग्रेज़ी में चटर-पटर करते हैं तो माँ-बाप बड़े प्रसन्न होते हैं कि हमारा बेटा अङ्ग्रेज़ी बोल रहा है।
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बच्चों को भोजन मंत्र (श्रीमद्भगवद्गीता वाला या अन्नपूर्णा स्तोत्र का), और शांति-पाठ तो आते ही नहीं है। बच्चे वही सीखते हैं जो विद्यालय में उनके मास्टर पढ़ाते हैं। स्कूलों में ईसाईयों की प्रार्थना सिखाई जाती है, न कि हिंदुओं की। अपने सामने ही अपना विनाश देख रहे हैं। असहाय हैं।
ॐ तत्सत् !!
२५ जून २०२४
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