पिछले बारह-तेरह वर्षों में मुझे फेसबुक पर लिखने के लिए अनेक आध्यात्मिक मनीषी विद्वानों ने खूब प्रोत्साहित किया है, जिनका मैं ऋणी हूँ। उन्हीं के प्रोत्साहन के फलस्वरूप मैंने बहुत कुछ सीखा, अनुभूत किया और कुछ लिख पाया, अन्यथा मैं शून्य था।
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सबसे पहिले वैष्णवाचार्य आचार्य सियाराम दास नैयायिक जी से फेसबुक पर मेरा परिचय सन २०११ में हुआ था। उन्होने हिन्दी भाषा में धार्मिक लेख लिखने के लिए मुझे खूब प्रोत्साहित किया। तब तक मुझे हिन्दी भाषा में लिखने का अभ्यास नहीं था। उल्टे-सीधे गलत-सलत अनेक लेख मैंने लिखे जिनका उन्होंने कभी बुरा नहीं माना, और लगातार प्रोत्साहित करते रहे। उन्हीं के कहने से मैंने हिन्दी में लिखना आरंभ किया। अब तो हिन्दी के सिवाय किसी अन्य भाषा में लिखने का आनंद ही नहीं आता।
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तत्पश्चात हिन्दी में देशभक्ति पर लिखने वाले अनेक लोगों से परिचय हुआ। अनेक संत-महात्माओं और विद्वानों से भी परिचय हुआ। मुंबई के प्रख्यात ज्योतिषी श्री हर्षदेव तिवारी शास्त्री जी ने मेरा परिचय प्रयागराज के एक साहित्यकार विद्वान पण्डित (स्वर्गीय) श्री मिथिलेश द्विवेदी जी से कराया। उनसे बहुत अच्छी मित्रता भी हुई। उनसे प्रेरणा लेकर मैंने खूब परिष्कृत और संस्कृतनिष्ठ भाषा में लिखना आरंभ कर दिया। किसी भी तरह की कोई कठिनाई मुझे नहीं हुई।
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उन्हीं दिनों जोधपुर में रहने वाले परम विद्वान वयोवृद्ध दण्डी स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी से परिचय और मित्रता हुई। वे एक विशुद्ध वेदांती और शास्त्रज्ञ महात्मा हैं। अब तो उन्होने जोधपुर छोड़ दिया है और बिहार के पूर्वी-चंपारण जिले में नेपाल सीमा के पास घने वन में एक मठ बनाकर रहते हैं। उन से उनकी अनुमति के बिना कोई मिल नहीं सकता है। उन दण्डी स्वामी जी से ही मैंने व्यावहारिक वेदान्त सीखा। उन्होने मुझे वेदान्त की प्रत्यक्ष अनुभूतियाँ भी कराईं और मुझ में खूब प्रखर वेदान्त-वासना भी जागृत की जो बहुत दुर्लभ है। उनके प्रभाव से मेरी भाषा में वेदान्त और आध्यात्म और भी अधिक आ गया।
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वहीं जोधपुर में ही मेरी मित्रता एक युवा तपस्वी विद्वान साधु ब्रह्मचारी शिवेंद्र स्वरूप जी से हुई थी। उन्होंने मेरा परिचय अपने गुरु दण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी से करवाया। दण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी एक विलक्षण महात्मा हैं जिन की थाह लेना असंभव है। वे हर किसी से नहीं मिलते। सामने वाले की पात्रता देखकर ही बात करते हैं। उनकी कृपा से भी बहुत कुछ सीखा। उनसे सीखने के लिए तो अभी भी बहुत कुछ है लेकिन मुझ में अब कोई क्षमता नहीं बची है। अब आगे जो कुछ भी सीखना है, वह अगले जन्म में ही होगा, इस जन्म में नहीं।
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विद्वानों में मेरा परिचय और मित्रता श्री अरुण उपाध्याय जी से भी हुई, जो एक उच्च कोटि के विलक्षण वैदिक विद्वान, साहित्यकार और गणितज्ञ हैं। ज्योतिष में उनकी गणनाओं को भारत के सारे धर्माचार्य स्वीकार करते हैं। वे एक IPS अधिकारी हैं जो पुलिस में ADG के पद से सेवानिवृत हुए। पुलिस में किसी को समय नहीं मिलता। मेरे लिए यह एक रहस्य था कि पुलिस की नौकरी करते हुए उन्होने इतनी विद्वता कहाँ से और कैसे अर्जित की ? यह जानने के लिए मैं एक दिन उनसे मिलने ओड़ीशा में भुवनेश्वर उनके घर पहुँच गया। उनके घर पर एक घंटे तक मेरी उनसे वेदों और पुराणों के आपसी सम्बन्धों पर चर्चा हुई। उसी चर्चा में उनका रहस्य मुझे समझ में आया कि उन्हें अपने पिछले दो-तीन जन्मों की पूरी स्मृति है। अपने पूर्व जन्मों में वे एक वैदिक विद्वान, साहित्यकार और गणितज्ञ थे। अपने पिछले दो जन्मों में जो कुछ भी उन्होने सीखा, वह सब इस जन्म में भी याद था। ऐसे विलक्षण विद्वान से परिचय, मित्रता, और अनेक बार मिलना मेरा सौभाग्य था।
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पिछले जन्म में तो मैंने भी एक बहुत बड़े योगी से क्रियायोग की दीक्षा ली थी (उनका नाम नहीं बताऊंगा), सूक्ष्म जगत में उनकी एक बहुत बड़ी सत्ता भी है। उन्होंने इस जन्म में भी अनेक बार मेरी रक्षा की है, और मार्गदर्शन भी किया है। उनकी स्मृति इस जन्म में बहुत देरी से जागृत हुई।
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पूर्व जन्मों में कोई विशेष अच्छे कर्म नहीं किए थे। इसलिए कर्मफल भुगतने के लिए यह जन्म लेना पड़ा। इस जन्म में तो सन १९८१ में स्वामी भावानन्द गिरि से मैंने क्रियायोग की दीक्षा ली थी। उन्होने मुझे सिखाने के लिए बहुत अधिक मेहनत की। ऐसे महात्माओं का कृपापात्र होना बहुत दुर्लभ है।
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फेसबुक पर अनेक भक्त उद्योगपतियों से भी परिचय और मित्रता हुई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि स्वयं भगवान से ही हमारी मित्रता हो गई है। भगवान से मेरे संबंध एक मित्र के से ही हैं। जीवन में मैंने खूब लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य पाया है। अब अवशिष्ट जीवन भगवान के साथ ही उनके स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में ही व्यतीत हो जाएगा। किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। मेरा एक ही कहना है कि भगवान से प्रेम करो, खूब प्रेम करो, और हर समय प्रेम करो। मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन॥
कृपा शंकर
२५ जून २०२४
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