Tuesday, 28 January 2025

शोकगीत के रूप में लिखी गई हिन्दी भाषा की एक प्रसिद्ध साहित्यिक रचना ---

 शोकगीत के रूप में लिखी गई हिन्दी भाषा की एक प्रसिद्ध साहित्यिक रचना ---

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बसंत पंचमी के दिन सन १८९९ में जन्मे हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं.सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु पर "सरोज स्मृति" नाम का शोकगीत एक बहुत लंबी कविता के रूप में लिखा था| उन्हें अपनी प्रिय पुत्री के निधन पर इतनी गहरी वेदना हुई जिसकी करुणात्मक अभिव्यक्ति मर्माहत कर देने वाले काव्य के रूप में उन्होने की है| उनके वेदनात्मक गहन भावों का और शब्दों का चयन इतना अनुपम है कि उसकी किसी भी साहित्य में कोई बराबरी नहीं हो सकती| ऐसा शोक-गीत हिन्दी में दूसरा नहीं है| इस कविता में जीवन के संघर्ष से छनकर आयी हुई साहस, विद्रोह, वात्सल्य, अवसाद और ग्लानि की मिली-जुली अनुभूतियाँ उद्भूत होती हैं| कहीं-कहीं से कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ ..... (पूरी कविता बहुत अधिक लंबी है)
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मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल
दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज, जो नही कही
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अस्तु मैं उपार्जन को अक्षम
कर नहीं सका पोषण उत्तम
कुछ दिन को, जब तू रही साथ,
अपने गौरव से झुका माथ,
पुत्री भी, पिता-गेह में स्थिर,
छोड़ने के प्रथम जीर्ण अजिर।
आँसुओं सजल दृष्टि की छलक
पूरी न हुई जो रही कलक
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मुझ भाग्यहीन की तू सम्बल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हो भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!
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यहाँ लेखक ने अपनी पुत्री सरोज का तर्पण अपने सारे संचित अच्छे कर्मों का उसे अर्पण कर के किया है| आज उनकी यह रचना सामने आई जिसे आंशिक रूप से पढ़कर ही मैं भावुक हो उठा| एक पिता द्वारा दिए गए तर्पण से उच्च तर्पण हो ही नहीं सकता|

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