Tuesday, 28 January 2025

शब्दार्थों पर नहीं, आध्यात्मिक अर्थों पर विचार करें ---

 शब्दार्थों पर नहीं, आध्यात्मिक अर्थों पर विचार करें कि --

(१) हरिःकृपा क्या होती है? तथा
(२) "श्रीहरिः" व "हरिःॐ" का अर्थ क्या होता है?
इन प्रश्नों का उत्तर सरल नहीं है। आप अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा का उपयोग करेंगे तब जाकर आप को समझ में आयेगा। "हरिः" भी एक अनुभूति है, और "ॐ" भी एक अनुभूति है जो बहुत गहरे ध्यान में होती हैं।
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आंशिक रूप से नहीं, अपनी समग्रता में भगवान का अनुसंधान कीजिये। हमारा जन्म ही भगवत्-प्राप्ति के लिए हुआ है, जो अंततः सभी को होगी। सब पर भगवान श्रीहरिः की कृपा बनी रहे। हमारा एकमात्र संबंध भगवान से है, क्योंकि इस जन्म से पूर्व भगवान ही हमारे साथ थे, और इस जन्म के पश्चात भी भगवान ही हमारे साथ होंगे। वे ही माँ-बाप, सगे-संबंधियों, व मित्रों के रूप में आये। वह भगवान का ही प्रेम था जो इन सब के माध्यम से हमें प्राप्त हुआ। एक दिन अचानक ही बिना किसी पूर्व सूचना के, सब कुछ यहीं छोड़कर उनके पास जाना ही पड़ेगा, अतः अभी से उनसे मित्रता कर लो। बाद में मित्रता का अवसर नहीं मिलेगा।
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दूसरों का धन ठगने, उनको लूटने, या उनका गला काटने के लिये भगवान का नाम मत लो, अन्यथा नर्क की भयावह यंत्रनाएँ आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। । कोई भी बचाने नहीं आयेगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! हरिःॐ !!
कृपा शंकर
२९ जनवरी २०२४
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पुनश्च: --- मेरे पास लगभग नित्य ही किसी न किसी दुःखी व्यक्ति का फोन आता है। उनको मैं कुछ कह भी नहीं सकता, उनके लिए प्रार्थना ही कर सकता हूँ।धोखाधड़ी और दुःख-कष्टों का शिकार मैं भी हूँ। लेकिन सब कुछ "श्री कृष्ण-समर्पण" कर के मैं प्रसन्न हूँ।
जय शंकर प्रसाद की कालजयी रचना "कामायनी" की ये पंक्तियाँ सदा याद रखो --
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल;
ईश का वह रहस्य वरदान,
कभी मत इसको जाओ भूल॥"

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