अब किसी भी तरह की आध्यात्मिक साधना/उपासना/ जप/तप आदि करना मेरे लिए संभव नहीं है। भगवान से भी कुछ नहीं चाहिए, नर्क में रखें या स्वर्ग में; मेरी इसमें कोई रुची नहीं है। कोई मोक्ष भी नहीं चाहिए। जो करना है वह वे करें, उनकी इच्छा। मुझे कोई भय या कामना नहीं है।
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लेकिन भगवान का भी मन नहीं लगता मेरे बिना। इसीलिए हर क्षण जबर्दस्ती मुझे याद करते हैं। मैं धर्म-अधर्म -- सबसे परे हूँ। मेरा कोई लक्ष्य नहीं है। यह भगवान का ही लक्ष्य है कि वे मुझमें स्वयं को व्यक्त करें। मेरी कोई समस्या नहीं है। सारी समस्याएँ भी वे हैं, और समाधान भी वे ही हैं। मुझे इतनी जोर से पकड़ रखा है कि मैं सब बँधनों से मुक्त हो गया हूँ। जय हो भगवन। आपकी जय हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०२३
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