Saturday, 25 January 2025

परमात्मा से पृथकता का बोध हमारे पतन का कारण है ---

 परमात्मा से पृथकता का बोध हमारे पतन का कारण है ---

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कुछ होने का अहंकार हमें परमात्मा से दूर ले जाता है। वास्तव में जो कुछ भी है वह परमात्मा है। हम उनको समर्पित हों, हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। भगवान ने गीता में यही बताया है --
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे॥१८:६५॥"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
अर्थात - तुम मच्चित, मद्भक्त और मेरे पूजक (मद्याजी) बनो और मुझे नमस्कार करो; (इस प्रकार) तुम मुझे ही प्राप्त होगे; यह मैं तुम्हे सत्य वचन देता हूँ,(क्योंकि) तुम मेरे प्रिय हो॥
सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
Dedicate thyself to Me, worship Me, sacrifice all for Me, prostrate thyself before Me, and to Me thou shalt surely come. Truly do I pledge thee; thou art My own beloved.
Give up then thy earthly duties, surrender thyself to Me only. Do not be anxious; I will absolve thee from all thy sin.
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मिर्जा गालिब के इस शेर में सारा रहस्य छिपा है --
"न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता॥
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भगवान से प्रेम नहीं है तो कितने भी शास्त्र पढ़ लो, कितनी भी तपस्या कर लो; कुछ नहीं मिलने वाला है। हमारी कोई औकात नहीं है कि हम कोई भक्ति कर लें। हमारे माध्यम से भगवान स्वयं ही अपनी भक्ति करते हैं। जो कुछ भी हो रहा है, वह भगवान कर रहे हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०२३

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