Monday, 6 January 2025

पूर्ण समर्पण ..... .

  पूर्ण समर्पण .....

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किसी भी महापुरुष, युगपुरुष या सदगुरु को समझने के लिए आवश्यकता है उस चेतना यानि उस चैतन्य से एकाकार होने की जिस चैतन्य की स्थिति में वे थे या हैं| मात्र शब्दों से उन्हें नहीं समझा जा सकता| मनुष्य की बुद्धि और मन अपनी सुविधानुसार शब्दों के कैसे भी अर्थ निकाल सकते है| गुरु के प्रति समर्पित होकर ही शिष्य गुरु को समझ सकता है, अन्यथा नहीं|
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परमात्मा की झलक भी परम प्रेम और समर्पण से ही मिलती है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम ही वह गुण है जो अन्य सब गुणों की जननी है| जो व्यक्ति भगवान को प्रेम नहीं कर सकता वह अन्य किसी को भी प्रेम नहीं कर सकता| परमात्मा से परम प्रेम होने पर स्वतः ही अन्य सब गुण खिंचे चले आते हैं| उस परम प्रेम की ही परिणिति है .... समर्पण|
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परमात्मा को समर्पित व्यक्ति ही उसे उपलब्ध हो सकता है| यह पूर्ण समर्पण ही मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य है| ॐ||
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०७ जनवरी २०१७

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