भगवान श्रीराम के ध्यान से जीवन में निर्भीकता आती है, सारी कायरता, दब्बूपन और सभी कमज़ोरियाँ दूर होती हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, वे परमब्रह्म परमात्मा विष्णु के अवतार हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के १० वें अध्याय के ३१ वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को ही शस्त्रधारी राम बताया है --"रामः शस्त्रभृतामहम्"। तत्वरूप में राम और शिव में भी कोई भेद नहीं है। राम नाम (रां) और ओंकार (ॐ) के जप का फल भी एक ही है। राम नाम के जप से चेतना ऊर्ध्वगामी और विस्तृत होती है। अपने विवेक के प्रकाश में पूर्ण भक्ति के साथ उन पुरुषोत्तम का ध्यान और मानसिक जप अपने कूटस्थ सूर्यमण्डल में करें। इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है। ज्योतिर्मय ब्रह्म को ही निराकार कहते हैं। किसी भी रूप में पूर्ण भक्ति के साथ उनका ध्यान करें। ॐ तत्त्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जनवरी २०२४
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