"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते।
पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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(प्रश्न) : निज जीवन में पूर्णता को प्राप्त किए बिना तृप्ति और संतुष्टि नहीं मिलती। लेकिन पूर्णता को हम कैसे प्राप्त हों?
(उत्तर) : हमारी अंतर्रात्मा कहती है कि जिन का कभी जन्म भी नहीं हुआ, और मृत्यु भी नहीं हुई, उनके साथ जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं।
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(उत्तर) : जिनकी हमें हर समय अनुभूति होती है, वे परमब्रह्म परमशिव परमात्मा ही पूर्ण हो सकते हैं। उन को उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है। जब तक उनमें हम समर्पित नहीं होते, तब तक यह अपूर्णता रहेगी॥
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(प्रश्न) : उन्हें हम समर्पित कैसे हों ?
(उत्तर) : एकमात्र मार्ग है -- परमप्रेम, पवित्रता और उन्हें पाने की एक गहन अभीप्सा। अन्य कोई मार्ग नहीं है। जब इस मार्ग पर चलते हैं, तब परमप्रेमवश वे निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९/११/२०२४
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