हे गुरु-रूप ब्रह्म, उतारो पार भाव-सागर के, अपनी परम कृपा करो ...
.
कभी कभी श्रीगुरु-चरणों के आश्रय से भटक जाता हूँ जिस की परिणिति बड़ी पीड़ादायक और कष्टमय होती हैं|
गुरु महाराज का आदेश तो मानना ही पड़ेगा| उनका आदेश है कि अपनी चेतना को सदा "आध्यात्मिक-नेत्र" यानि कूटस्थ में रखो| वे कहते हैं कि तुम्हारी एकमात्र समस्या ... "भगवान की प्राप्ति" है, अन्य सारी समस्याएँ भगवान की हैं, तुम्हारी नहीं|
इसके लिए उनका स्पष्ट मार्ग-निर्देश है| कोई संशय नहीं है| उन की दी हुई कुछ स्वभाविक साधनायें हैं, जिन का मैं साक्षी और निमित्त मात्र हूँ| सारी साधनायें तो करुणावश जगन्माता स्वयं ही करती हैं|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ नवंबर २०२०
.
गुरु रूप ब्रह्म, आपने मुझे भव-सागर के पार उतार दिया है। मैं आपके साथ एक हूँ। मुझ में और आप में अब कोई भेद नहीं रहा है।
गुरु तत्व की इतनी गहरी अनुभूतियाँ हैं कि गुरु को मैं स्वयं से और परमात्मा से अलग नहीं पाता। इसलिए उनके ऊपर इस बार कुछ भी नहीं लिख पाया। वे मेरे साथ एक हैं। उनमें और मुझ में कोई अंतर अब नहीं रहा है। ॐ गुरु !! जय गुरु !! ॐ ॐ ॐ !!
No comments:
Post a Comment