Tuesday 5 May 2020

संक्षेप में नादानुसंधान .....

संक्षेप में नादानुसंधान .....
"नास्ति नादात परो मन्त्रो न देव: स्वात्मन: पर:| नानु सन्धात परा पूजा नहि तृप्ते: परम सुखं||"
There is no mantra superior to Nada and there is no other deity superior to Atma. No worship is superior to the worship of soul. स्थिर तन्मयता (Stable total identification) ही नादानुसंधान है|
मन्त्रयोग संहिता में आठ प्रमुख बीज मन्त्रों का उल्लेख है जो शब्दब्रह्म ओंकार की ही अभिव्यक्तियाँ हैं| लिंग पुराण के अनुसार ओंकार का प्लुत रूप नाद है| मन्त्र में पूर्णता "ह्रस्व", "दीर्घ" और "प्लुत" स्वरों के ज्ञान से ही आती है जिसके साथ पूरक मन्त्र की सहायता से विभिन्न सुप्त शक्तियों का जागरण होता है| वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाद, बिंदु और मुद्राओं व साधन क्रम का ज्ञान सद्गुरु ही करा सकता है|
बीजमंत्रों, अजपा-जप, षटचक्र साधना, योनी मुद्रा में ज्योति दर्शन, और नाद व ज्योति तन्मयता, खेचरी मुद्रा, साधन क्रम आदि का ज्ञान ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय सिद्ध गुरु की कृपा से ही हो सकता है| साधना में सफलता भी गुरु कृपा से ही होती है और ईश्वर लाभ भी गुरु कृपा से होता है| हम सब जीव से शिव बनें और परमात्मा में हमारी जागृति हो|
जब साधक को मेरुशीर्ष (खोपड़ी के पीछे का भाग) में प्रणव ध्वनि जिसे अनाहत नाद भी कहते हैं, सुननी आरम्भ हो जाए और ईश्वर लाभ के अतिरिक्त अन्य कोई कामना नहीं है तो अन्य बीज मन्त्रों के जाप की आवश्यकता नहीं है| फिर साधक इस ध्वनि को ही सुनता रहे और इसी का ही मानसिक जप करता रहे| इस ध्वनी को सम्पूर्ण सृष्टि में और उससे भी परे विस्तृत कर दे और अपने स्वयं के अस्तित्व को भी उसी में समर्पित कर दे| एक बार आँख खोलकर अपनी देह को देखो और यह भाव दृढ़ करो कि मैं यह शरीर नहीं हूँ, बल्कि मैं सम्पूर्ण अस्तित्व और उससे भी परे जो है वह सब मैं ही हूँ| अपने आप को उस पूर्णता में समर्पित कर दें| परमात्मा का परम प्रेम यह ओंकार की ध्वनि ही है और वह परम प्रेम जिससे यह सम्पूर्ण सृष्टि बनी है वह परम प्रेम मैं ही हूँ| जप करते हुए इस ध्वनी को सुनते रहें| मन में पूर्ण समर्पण का भाव हो यानि मैं यह देह नहीं बल्कि सर्व व्यापक ओंकार रूप परमात्मा का अमृत पुत्र हूँ, मै और मेरे प्रभु एक ही हैं| मैं उनसे पृथक नहीं हूँ|
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यह एक गुरुप्रदत्त ज्ञान है जो सदगुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है| यहाँ जो लिखा है वह मात्र पाठक की रुचि जागृत करने के लिए है| भगवान से प्रेम होगा तो वे गुरुरूप में भी आयेंगे और ज्ञान प्रदान करेंगे| ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ मार्च २०२०

1 comment:

  1. "ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं त्त्वमस्यादिलक्ष्यम्|
    एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं, भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि||"
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    गुरु-तत्व एक अनुभूति का विषय है जिसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है| उसे समझने के लिए अहंकार से मुक्त होकर समर्पित होना पड़ता है| प्रेमपूर्वक प्रयास करते हुए अपनी चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर रखें| आगे के सारे द्वार अपने आप स्वतः ही खुलेंगे, अंधकार भी दूर होगा, और संतुष्टि व तृप्ति भी मिलेगी| सहस्त्रार में दिखाई देने वाली ज्योति .... गुरु चरण पादुका है, जिसमें स्थिति ... गुरु चरणों में आश्रय है| सहस्त्रार में ध्यान श्रीगुरुचरणों का ध्यान है| श्रीगुरुचरणों का ध्यान करें, आगे की यात्रा अनंत है|
    ॐ ॐ ॐ !!

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