Tuesday 23 January 2018

भगवान की अनन्य भक्ति क्या है ? .....

भगवान की अनन्य भक्ति क्या है ? .....
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ध्यान साधना और भगवान की अनन्य भक्ति में मैं कोई भेद नहीं पाता| मेरी अनुभूति में ये दोनों एक ही हैं, इन में कोई अंतर नहीं है| ध्यान साधना में हम ध्यान परमात्मा की अनंतता पर करते हैं, जिसमें सब समाहित है और कुछ भी पृथक नहीं है| अनन्य भक्ति भी यही है|
परमात्मा से मैं पृथक नहीं हूँ, इस प्रकार परमात्मा को अपने से एक जानकर जो परम प्रेम किया जाता है, वह ही अनन्य भक्ति है| भगवान से मैं अन्य नहीं हूँ, वे मेरे साथ एक हैं, वे ही वे हैं, अन्य कोई नहीं है, सिर्फ वे ही वे हैं, यह जो 'मैं' हूँ, वह भी वास्तव में स्वयं परमात्मा ही हैं| मैं उन परम पुरुष से अलग नहीं हूँ, इस प्रकार से उनको अपने से एक जान कर जो प्रेम किया जाता है वह ही अनन्य है| परमात्मा को मैं जब अपना स्वरुप मानता हूँ, तब उनसे जो प्रेम होता वह ही परम प्रेम है, और वह ही अनन्य भक्ति है| उस परम प्रेम से ही भगवान मिलते हैं| इस धारणा का गहन चिंतन ही ध्यान है|
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भगवान कहते हैं .....
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्‌ ||८.२२||
संधि विच्छेद :--
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यः तु अनन्या |
यस्य अन्तः स्थानि भूतानि येन सर्वम् इदं ततम्‌ ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०१८

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