स्वाध्याय प्रवचनाभ्याम् न प्रमदितव्यम् ......
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श्रुति भगवती (वेदों का) का आदेश है ..... "स्वाध्याय प्रवचनाभ्याम् न प्रमदितव्यम् |" अर्थात् पढने और पढ़ाने में प्रमाद मत करो|
और --"स्वाध्यायान्मा प्रमद:|" अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद मत करो|
.
एक वैदिक कथा है कि एक बार तीन ऋषियों के मध्य वाद-विवाद हुआ कि संसार में सबसे बड़ी चीज क्या है|
मुद्गल ऋषि ने कहा कि स्वाध्याय और प्रवचन ही इस संसार में सबसे बड़ी चीज है|
पौरिषिष्टि ऋषि ने कहा कि इस संसार में तपस्या ही सबसे बड़ी चीज है|
राधीतर ऋषि ने कहा कि सत्य ही सबसे बड़ी चीज है|
.
अंत में निर्णय वेद पुरुष पर छोड़ दिया गया| वेद पुरुष ने अपना निर्णय मुद्गल ऋषि के पक्ष में दिया| वेद के द्वारा यह निर्णय दिया गया कि पढना-पढ़ाना, सत्य और तपस्या से भी बड़ा है|
.
यह कितनी सुन्दर प्रार्थना है जो प्राचीन भारत में अध्यापन से पूर्व
की जाती थी .....
"ओ३म् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै| तेजस्वि नावधीतमस्तु माँ विद्विषावहै||
ओ३म् शांति शांति शांति||"
अर्थात -- हे परमात्मा ! हम (गुरु-शिष्य) दोनों की रक्षा करो, हम दोनों का पालन करो, हम दोनों साथ साथ में रहकर तेजस्वी दैवी कार्य करें, हम दोनों का किया हुआ अध्ययन तेजस्वी और दैवी हो और हम दोनों परस्पर एक दुसरे से द्वेष न करें|
.
भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत का प्राण थी जिसे बड़ी कुटिलता और निर्दयता से अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया| कभी न कभी तो युग परिवर्तन होगा, भारत पुनश्चः अपने परम वैभव को प्राप्त होगा और विश्व गुरु बनेगा|
.
ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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श्रुति भगवती (वेदों का) का आदेश है ..... "स्वाध्याय प्रवचनाभ्याम् न प्रमदितव्यम् |" अर्थात् पढने और पढ़ाने में प्रमाद मत करो|
और --"स्वाध्यायान्मा प्रमद:|" अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद मत करो|
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एक वैदिक कथा है कि एक बार तीन ऋषियों के मध्य वाद-विवाद हुआ कि संसार में सबसे बड़ी चीज क्या है|
मुद्गल ऋषि ने कहा कि स्वाध्याय और प्रवचन ही इस संसार में सबसे बड़ी चीज है|
पौरिषिष्टि ऋषि ने कहा कि इस संसार में तपस्या ही सबसे बड़ी चीज है|
राधीतर ऋषि ने कहा कि सत्य ही सबसे बड़ी चीज है|
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अंत में निर्णय वेद पुरुष पर छोड़ दिया गया| वेद पुरुष ने अपना निर्णय मुद्गल ऋषि के पक्ष में दिया| वेद के द्वारा यह निर्णय दिया गया कि पढना-पढ़ाना, सत्य और तपस्या से भी बड़ा है|
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यह कितनी सुन्दर प्रार्थना है जो प्राचीन भारत में अध्यापन से पूर्व
की जाती थी .....
"ओ३म् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै| तेजस्वि नावधीतमस्तु माँ विद्विषावहै||
ओ३म् शांति शांति शांति||"
अर्थात -- हे परमात्मा ! हम (गुरु-शिष्य) दोनों की रक्षा करो, हम दोनों का पालन करो, हम दोनों साथ साथ में रहकर तेजस्वी दैवी कार्य करें, हम दोनों का किया हुआ अध्ययन तेजस्वी और दैवी हो और हम दोनों परस्पर एक दुसरे से द्वेष न करें|
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भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत का प्राण थी जिसे बड़ी कुटिलता और निर्दयता से अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया| कभी न कभी तो युग परिवर्तन होगा, भारत पुनश्चः अपने परम वैभव को प्राप्त होगा और विश्व गुरु बनेगा|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
नमस्कार
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