ईश्वर ही मेरा विषय और मनोरंजन है ....
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कई लोग मुझ से पूछते हैं कि मैं क्यों इतना समय लिखने में व्यतीत करता हूँ| इस पर मेरा एकमात्र और सही उत्तर यही है कि यह मेरा मनोरंजन मात्र ही है| मैं यह सब स्वयं को व्यक्त करने, अपने मन को लगाने और अपने स्वयं के कल्याण के लिये ही कर रहा हूँ| इसे मात्र मेरा मनोरंजन ही समझ लीजिये, पर मैं इससे पूर्ण संतुष्ट हूँ| मुझे कोई शिकायत नहीं है|
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मेरे मन , बुद्धि, चित्त और अहंकार को उस चोर-जार-शिखामणि, कुहुक-शिरोमणि और दुःख-तस्कर हरि ने अधिकाँश चुरा लिया है| उस तस्कर का आकर्षण इतना प्रबल है कि छोड़े से नहीं छूटता, और अब उससे मुझे प्रेम हो गया है| अब उस हरि ने एक अभीप्सा (एक ऐसी प्यास जो कभी नहीं बुझती), और ह्रदय में एक ऐसी अग्नि भी जला दी है जो कभी नहीं बुझती| अब मेरे सामने कोई दूसरा चारा नहीं है| उस तस्कर, चोर-जार-शिखामणि और कुहुक-शिरोमणि हरि से बस एक ही निवेदन है कि जो बचा खुचा है, वह भी ले ले| यह थोड़ा बहुत क्यों बाकी छोड़ दिया? इसे भी ले जाइए| अपने इस अल्प प्रेम को परम प्रेम में परिवर्तित कर दीजिये| उस को पूर्ण समर्पण का प्रयास ही अब एकमात्र मार्ग रह गया है, बाकि के सब मार्ग बंद हो गये हैं| अब ईश्वर ही मेरा सर्वाधिक प्रिय विषय है| उसके गुण ही मेरा अस्तित्व हैं| इति ||
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(उपरोक्त लेख में दिए कुछ शब्दों के अर्थ :-
(१) गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान श्री कृष्ण को "चोर-जार-शिखामणि" यानि चोरों का सरदार कहा गया है, क्योंकी चोर तो सिर्फ वस्तुओं की चोरी करता है, पर भगवन श्रीकृष्ण तो चोरी करने की इच्छा को ही चुरा लेते हैं|
(२) कुहुक .... कोहरे को कहते हैं| भगवन सदा आपके साथ हैं, पर माया रुपी घने कोहरे के कारण वे पास होकर भी नहीं दिखाई देते, इसलिए कुछ शास्त्रकारों ने भगवान को 'कुहुक शिरोमणि" की संज्ञा दी है|
(३) वे भक्तों के सब तापों को हर लेते हैं इसलिए उनका एक नाम "हरि' भी है| हरि का शाब्दिक अर्थ है .... चोर|
(४) रुद्री में भगवान शिव को 'दुःख तस्कर' कहा है क्योंकी वे अपने भक्त के दुःखों को चुपचाप इस तरह चुरा लेते हैं कि भक्त को पता ही नहीं चलता| तस्कर का अर्थ भी चोर होता है|)
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थोड़ा बहुत जो इस माध्यम से व्यक्त हो जाता है वह उस बचे-खुचे अल्प प्रेम की ही अभिव्यक्ति है जो उसे ही समर्पित है| आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव || ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
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कई लोग मुझ से पूछते हैं कि मैं क्यों इतना समय लिखने में व्यतीत करता हूँ| इस पर मेरा एकमात्र और सही उत्तर यही है कि यह मेरा मनोरंजन मात्र ही है| मैं यह सब स्वयं को व्यक्त करने, अपने मन को लगाने और अपने स्वयं के कल्याण के लिये ही कर रहा हूँ| इसे मात्र मेरा मनोरंजन ही समझ लीजिये, पर मैं इससे पूर्ण संतुष्ट हूँ| मुझे कोई शिकायत नहीं है|
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मेरे मन , बुद्धि, चित्त और अहंकार को उस चोर-जार-शिखामणि, कुहुक-शिरोमणि और दुःख-तस्कर हरि ने अधिकाँश चुरा लिया है| उस तस्कर का आकर्षण इतना प्रबल है कि छोड़े से नहीं छूटता, और अब उससे मुझे प्रेम हो गया है| अब उस हरि ने एक अभीप्सा (एक ऐसी प्यास जो कभी नहीं बुझती), और ह्रदय में एक ऐसी अग्नि भी जला दी है जो कभी नहीं बुझती| अब मेरे सामने कोई दूसरा चारा नहीं है| उस तस्कर, चोर-जार-शिखामणि और कुहुक-शिरोमणि हरि से बस एक ही निवेदन है कि जो बचा खुचा है, वह भी ले ले| यह थोड़ा बहुत क्यों बाकी छोड़ दिया? इसे भी ले जाइए| अपने इस अल्प प्रेम को परम प्रेम में परिवर्तित कर दीजिये| उस को पूर्ण समर्पण का प्रयास ही अब एकमात्र मार्ग रह गया है, बाकि के सब मार्ग बंद हो गये हैं| अब ईश्वर ही मेरा सर्वाधिक प्रिय विषय है| उसके गुण ही मेरा अस्तित्व हैं| इति ||
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(उपरोक्त लेख में दिए कुछ शब्दों के अर्थ :-
(१) गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान श्री कृष्ण को "चोर-जार-शिखामणि" यानि चोरों का सरदार कहा गया है, क्योंकी चोर तो सिर्फ वस्तुओं की चोरी करता है, पर भगवन श्रीकृष्ण तो चोरी करने की इच्छा को ही चुरा लेते हैं|
(२) कुहुक .... कोहरे को कहते हैं| भगवन सदा आपके साथ हैं, पर माया रुपी घने कोहरे के कारण वे पास होकर भी नहीं दिखाई देते, इसलिए कुछ शास्त्रकारों ने भगवान को 'कुहुक शिरोमणि" की संज्ञा दी है|
(३) वे भक्तों के सब तापों को हर लेते हैं इसलिए उनका एक नाम "हरि' भी है| हरि का शाब्दिक अर्थ है .... चोर|
(४) रुद्री में भगवान शिव को 'दुःख तस्कर' कहा है क्योंकी वे अपने भक्त के दुःखों को चुपचाप इस तरह चुरा लेते हैं कि भक्त को पता ही नहीं चलता| तस्कर का अर्थ भी चोर होता है|)
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थोड़ा बहुत जो इस माध्यम से व्यक्त हो जाता है वह उस बचे-खुचे अल्प प्रेम की ही अभिव्यक्ति है जो उसे ही समर्पित है| आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव || ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
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