Friday 16 December 2016

एकोsहं द्वितीयो नास्ति ......

एकोsहं द्वितीयो नास्ति ......
मेरे एक अति प्रिय मित्र मेरा सदा उपहास करते हैं कि मैं कभी गहन अद्वैत वेदांत की बात करता हूँ , और कभी शुद्ध द्वैत की | पर मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है |
मेरे लिए किसी भी तरह से द्वैत-अद्वैत, साकार निराकार, मत-मतान्तर और सम्प्रदाय आदि से कोई अंतर नहीं पड़ता| 
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उपासना, उपास्य और उपासक ......... 
दृष्टी, दृश्य और दृष्टा ........
साधक, साध्य और साधना ........
मेरे लिए ये सब मेरे प्रियतम की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ है|
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मेरी यह भौतिक, प्राणिक, मानसिक, और आध्यात्मिक देह भी उसी प्रियतम का रूप हैं| जो वे हैं वे ही मैं हूँ, और जो मैं हूँ वे ही वे हैं|
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यह भेद एक मायावी आवरण मात्र है| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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